baal Mazzdur ki dincharya
Answers
जीवन कुछ आयामों में बंटा हुआ है। जैसे दिनचर्या। सुबह सोकर उठने से लेकर रात को नींद में जाने तक के कार्यों को दिनचर्या में शामिल किया जा सकता है,
>जैसे उठना, नित्यकर्म, व्यायाम, टहलना, नाश्ता, आफिस, व्यवसाय के लिए प्रस्थान। दोपहर का भोजन, विश्राम, जो लाखों करोडों लोग अपने कार्यस्थल पर ही करते हैं। एक मजदूर से लेकर एक बड़े संस्थान के प्रबंधक तक। कारखानों में काम करने वालों का भी यही मंजर होता है। और यदि शिफ्ट डयूटी हुई तो दिनचर्या बदलती रहती है उसके हिसाब से भोजन, नींद सब बदल जाता है। क्या किया जाए यह सब आज के औद्योगिकीकरण की देन है। मजबूरी है पर बार-बार दिनचर्या बदलने से स्वास्थ्य पर असर तो होता ही है। सब चलता है चलाना पड़ता है। कोई चारा नहीं हैं। जीवनचर्या का एक भाग है। दिनचर्या मिनटों से घंटे और घंटों से दिन और दिनों से महीने, वर्ष बनते हैं। दिनचर्या ही जीवनचर्या बन जाती है। बाकी कामों के लिए, परिवार के लिए, सामाजिक कार्यों के लिए उचित और पूरा समय नहीं दिया जा पाता या नहीं दिया जा सकता है। पर जीवन चलने का नाम है रुकने का नाम नहीं है। जो पानी बहता रहता है वह गंदा नहीं हो पाता या गंदगी को बहा कर ले जाता है। ठहरा हुआ पानी गंदा हो जाता है। बहना ही जिन्दगी है चाहे वह जीवन हो या पानी। प्रकृति में उपमाओं के लिए बहुत कुछ है और दी भी जाती है क्योंकि हम भी प्रकृति की ही उपज हैं, अस्तित्व की देन हैं तो उससे दूर कैसे रह सकते हैं। तो कोशिश करें दिनचर्या और जीवन चर्या को ढंग से, संतुलन से प्रबंधन करने की। इन सबके साथ जुड़ा है भावचर्या भाव ही विचार पैदा करते हैं। सुभाव से सुविचार, सकारात्मक विचार, शुभ कल्पना, और कुभाव से कुविचार, कुकल्पना, नकारात्मक विचार। जैन मुनि महाप्रज्ञ जी ने इस पर बहुत अच्छी किताब लिखी है। जिसका शीर्षक है- विचारों को बदलना सीखें। उनका कहना है इन्सान की सारी बीमारियों की जड़ जीवनचर्या, जीवनशैली, विचारों की नकारात्मकता, और कुभावों का परिणाम है। निरंतर भागदौड़ व्यस्तता, तनाव, चिंता, भय, लोभ ही आज हृदय रोग का कारण है। जहां सादा जीवन और उच्च विचार है वहां कोई भी रोग क्यों पनपेगा। स्वास्थ्य का जीवन सूत्र है स्वस्थ जीवन शैली। तो आइए, हम इन रास्तों पर चलें। सुख से जिएं बस, यही मेरा संदेश है।