Hindi, asked by prasantakumar3111, 1 year ago

Badle ki chamta hi buddhimatta ka maap hai

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Answered by anjukumari1932
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Answer:

बिल्कुल नहीं क्योंकि जब हम बदले की भावना रखते हैं तो हम अपने कर्तव्य से थोड़ा पीछे हट जाते हैं इसलिए किसी को भी बदले की भावना नहीं रखनी चाहिए

Answered by BrainlyHeroSumit
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बदलने की क्षमता ही बुद्धिमता का माप है

बदलने की क्षमता से तात्पर्य ‛ अपने - आप को किसी भी परिस्थितियों के अनुकूल बनाने की योग्यता अथवा निपूणता ’ । यह बात काफी हद तक तर्कसंगत है कि बदलने की क्षमता ही बुद्धिमत्ता का माप है । समझने के लिए आप मानव के विकास के विज्ञान को ले सकते हैं । हमारे पुरातत्वशास्त्रियों और वैज्ञानिकों का मानना है कि मानव लाखों वर्ष पूर्व जंगलों में पशुओं की भातिं ही जीवन व्यतीत किया करते थे । अन्य जानवरों की तरह मानव भी शिकार किया करते , भोजन के लिए एक जगह से दूसरी जगह भटकते , और तो और हिंसक पशुओं का खौफ़ भी उनके अंदर रहा करता था । किंतु जैसे - जैसे मानव ने बदलाव को अपनाया वो विकास की और अग्रसर होता चला गया , मानव ने सभी जीवों में उत्कृष्ट स्थान प्राप्त कर लिया । मानव ने केवल अपने आप को बदला , बल्कि अपने परिवेश को भी अपने अनुकूल बना लिया । यह इस बात का जीवंत उदाहरण है कि बदलने की क्षमता बुद्धिमत्ता का माप है ।

' परिवर्तन ही संसार का नियम है ' यह उक्ति इस बात का द्योतक है कि परिवर्तन से समाज का विकास होता है , वर्षों पूर्व सूचना का आदान-प्रदान करने में महीनों लग जाते थे , अब बस यह कुछ क्षणों की क्रीड़ा मालूम पड़ती है, यह परिवर्तन का ही तो परिणाम है जो हमारे बुद्धिमत्ता को दर्शाता है । जापान जैसे देश विकसित देश की श्रेणी के उत्कृष्ट स्थान प्राप्त किये हुए हैं यह उनके परिवर्तनशीलता का ही तो परिणाम है । यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नही होगी कि हम अपने आप को जितने तेज़ी से बदलाव को स्वीकार करेंगे हमारा विकास उतने तेजी से होगा । इस टेक्नोलॉजी के युग में उन विद्यार्थियों को कुशाग्र एवं कुशल माना जाता है जो इस विधा में बेहतर हैं क्योंकि उन्होंने बदलते समाज को स्वीकार किया और अपने आप को इस नए बदलाव के अनुसार ढाला ।

लेकिन बदलाव बुद्धिमत्ता के साथ- साथ मूर्खता की भी निशानी मालूम पड़ती है । मानव ने प्रकृति के बदलाव को न अपनाकर खुद से किये गए बदलाव को प्रकृति के ऊपर थोप दिया । इसके विपरीत कई प्रकार की भ्रंतिया उत्पन्न हो गयी हैं जो केवल मानव को नही अपितु समस्त संसार को नस्त-नाबूत करने को तैयार है । यह मूर्खता नही तो और क्या है । बदलाव हमेशा सार्थक रहे तभी से हमारे बुद्धिमत्ता को दर्शाता है ।

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