Bagiche ki sair par nibandh
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Hey mate!
Here's your answer!!
कभी-कभी इन्सान अपनी दैनिक दिनचर्या से इतना थक जाता है कि वह इन सब से दूर प्रकृति में अवकाश के क्षण गुजारना चाहता है। जिससे उसे कुछ राहत और आनन्द का अहसास हो। इसका अनुभव वह कहीं दूर नहीं बल्कि आसपास के बगीचे में ही जाकर कर सकता है। पहले के समय में हर व्यक्ति के घर में बगीचे का एक स्थान सुरक्षित रहता था। किंतु बढ़ती जनसंख्या के कारण धीरे-धीरे यह प्रथा खत्म हो गई और लोग बगीचे के स्थान पर गमलों से ही काम चलाने लगे। लेकिन शहरों में कुछ स्थान ऐसे हैं जहाँ कई मंजिला घर बनाकर आगे बगीचे के लिए स्थान सुरक्षित रखा जाता है। इन बगीचों में पेड़-पौधों के साथ-साथ बच्चों के क्रीड़ा स्थल जिसमें छोटा सा घास का मैदान होता है और झूलों का स्थान भी रहता है। इस बगीचे का आनन्द लोग अपनी बालकनी से भी कर सकते हैं। जो इच्छुक हैं वे बगीचे में जाकर व्यायाम, चहलकदमी और एक दूसरे से मुलाकात भी करते हैं। यहां बच्चों से लेकर बड़ों तक के लिए एक मिलने का एक नियत स्थान रहता है। यह तो सर्वविदित है कि चार दिवारी से बाहर प्रकृति में आनन्द ही कुछ और है।
Hope it helps you!
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कभी-कभी इन्सान अपनी दैनिक दिनचर्या से इतना थक जाता है कि वह इन सब से दूर प्रकृति में अवकाश के क्षण गुजारना चाहता है। जिससे उसे कुछ राहत और आनन्द का अहसास हो। इसका अनुभव वह कहीं दूर नहीं बल्कि आसपास के बगीचे में ही जाकर कर सकता है। पहले के समय में हर व्यक्ति के घर में बगीचे का एक स्थान सुरक्षित रहता था। किंतु बढ़ती जनसंख्या के कारण धीरे-धीरे यह प्रथा खत्म हो गई और लोग बगीचे के स्थान पर गमलों से ही काम चलाने लगे। लेकिन शहरों में कुछ स्थान ऐसे हैं जहाँ कई मंजिला घर बनाकर आगे बगीचे के लिए स्थान सुरक्षित रखा जाता है। इन बगीचों में पेड़-पौधों के साथ-साथ बच्चों के क्रीड़ा स्थल जिसमें छोटा सा घास का मैदान होता है और झूलों का स्थान भी रहता है। इस बगीचे का आनन्द लोग अपनी बालकनी से भी कर सकते हैं। जो इच्छुक हैं वे बगीचे में जाकर व्यायाम, चहलकदमी और एक दूसरे से मुलाकात भी करते हैं। यहां बच्चों से लेकर बड़ों तक के लिए एक मिलने का एक नियत स्थान रहता है। यह तो सर्वविदित है कि चार दिवारी से बाहर प्रकृति में आनन्द ही कुछ और है।
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