Bahu ke bidha ke rachnakar
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- सुशीला बहू
- सुशीला बहूहमारे पड़ोसी शर्मा जी के घर दो बेटों की शादी थी। हमारे यहाँ भी न्योता आया था। मैं और गुड्डी बहुत ही प्रसन्न थे, दावत उड़ाने जो मिलेगी। पूरे मोहल्ले में खुस फुस हो रही थी। मैं भी पूरा ख़बरी बन गया था।
- सुशीला बहूहमारे पड़ोसी शर्मा जी के घर दो बेटों की शादी थी। हमारे यहाँ भी न्योता आया था। मैं और गुड्डी बहुत ही प्रसन्न थे, दावत उड़ाने जो मिलेगी। पूरे मोहल्ले में खुस फुस हो रही थी। मैं भी पूरा ख़बरी बन गया था।खेलने जाता वहाँ महिला मंडली अपनी गप्पों का पिटारा खोले बैठी होती। कोई भी ख़बर शर्मा जी के बारे में होती तुरंत माँ को आ कर बताता। गुड्डी भी मेरी सहायक बनी हुयी थी।
- सुशीला बहूहमारे पड़ोसी शर्मा जी के घर दो बेटों की शादी थी। हमारे यहाँ भी न्योता आया था। मैं और गुड्डी बहुत ही प्रसन्न थे, दावत उड़ाने जो मिलेगी। पूरे मोहल्ले में खुस फुस हो रही थी। मैं भी पूरा ख़बरी बन गया था।खेलने जाता वहाँ महिला मंडली अपनी गप्पों का पिटारा खोले बैठी होती। कोई भी ख़बर शर्मा जी के बारे में होती तुरंत माँ को आ कर बताता। गुड्डी भी मेरी सहायक बनी हुयी थी।दरअसल बात यह थी कि शर्मा जी का छोटा बेटा तो बैंक मैनेजर था। लेकिन बड़ा बेटा आवारा, निकम्मा , बेरोज़गार , कामचोर , आदि अलंकरणों से सम्मानित था। शर्मा जी व मिसेज़ शर्मा सरकारी स्कूल में शिक्षक थे पर पुत्र् प्रेम में अंधे भी थे। उन्हें अपने पुत्र में कोई कमी नहीं दिखती थी। हमेशा कहते दोनों पुत्रों की शादी एक साथ करेंगे ।जब तक बड़े की नहीं होगी ,छोटे की भी शादी नहीं करेंगे ।हमारे मोहल्ले में ही पाण्डेय दरोग़ा जी भी रहते थे। रिटायर्ड थे पर पूरे मोहल्ले के सलाहकार थे। उन्होंने शर्मा जी को कई बार समझाया कि छोटे बेटे की शादी कर दो ,पर वो तो अपनी बात पर अड़े रहे। सब अचम्भित भी थे कि उन्होंने अपनी बात पूरी करके दिखा दी।
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