Science, asked by monakasyap6365, 2 months ago

बच्चों में अमीबी पेचिश रोग के क्या क्या कारण है​

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Answered by ydharmendra888
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Explanation:

अमीबा पेचिश

यह रोग एक विशेष प्रकार के सूक्ष्म जीवाणु एंटामीबा हिस्टॉलिटिका (Entamoeba histolytica) नामक उपसर्ग से उत्पन्न होता है, जो दो रूपों में शरीर की वृहत् आंत्र में विद्यमान रहता है। इन रूपों को पुटी (cyst) और अंडाणु (ova) कहते हैं। मनुष्य खाद्य एवं पेय पदार्थो द्वारा इस जीवाणु को पुटी रूप में शरीर के अंदर ग्रहण करता है और यह पुटी कभी कभी बृहत् आंत्र में पहुँचकर अडाणु का रूप ग्रहण कर लेती है और मल के साथ निष्कासित होती है तथा कभी कभी पुटी के रूप में ही मल के साथ निकलती है। मक्खियाँ इस रोग के प्रसार में अत्यधिक सहायक होती हैं। पेचिश के मुख्य लक्षणों में रोगी को तीव्र स्वरूप के उदरशूल के साथ अतिसार होता है तथा गुदा के पास के भाग में तीव्र ऐंठन होती है।

ऐसे रोगियों की परीक्षा करने पर अंधनाल (caecum) तथा वाम श्रोणीय क्षेत्र (left iliac region) में छूने से दाब वेदना (tenderness) होती है तथा कुछ ज्वरांश भी रहता है। दिन में 12 से लेकर 24 तथा उससे भी अधिक बार टट्टी होती है तथा मल में अधिकांश भाग श्लेष्मा (mucus), पूय (pus) तथा गाढ़ा रक्त रहता है।

कभी-कभी यह अमीबा जब निर्वाहिका शिरा (portal vein) में पहुँच जाता है तथा यकृतशोथ (epatitis) तथा यकृत विद्रधि (abscess) फोड़ा उत्पन्न करता है। यह तीव्र स्वरूप का घातक रोग है। जब यकृत विद्रधि फटती है, तो उपद्रव स्वरूप इसका पूय फुफ्फुस, आमाशय, बृहत् आंत्र, उदर कला (peritoneum) तथा हृदयावरण (pericardium) में पहुँचकर अनेक घातक विकार उत्पन्न करता है।

यकृत विद्रधि के मुख्य लक्षणों के अंतर्गत रोगी के यकृत भाग में तीव्र शूल होता है, जो कभी कभी दाहिने कंधे की ओर प्रसारित होता है। इसके अतिरिक्त शिर शूल, कंपन तथा ज्वर भी अपनी चरम सीमा पर रहता है। यकृत के भाग को छूने मात्र से रोगी को घोर कष्ट एवं वेदना होती है तथा उसके ऊपर की त्वचा शोधयुक्त हो जाती है।

यकृत विद्रधि के अतिरिक्त इस रोग से उत्पन्न होनेवाले अन्य उपद्रवों में आंत्रछिद्रण (intestinal perforation) तथा अवरोध (obstruction), कोथ (gangrene), मूत्राशयशोथ हैं। इस रोग से बचने के लिये समस्त खाद्य एवं पेय पदार्थो को मक्खियों से दूर रखना चाहिए। जिस व्यक्ति के मल से इस रोग की पुटिया निकलती है, उस व्यक्ति को रसोइए का कार्य नहीं करना चाहिए जब तक मल के द्वारा रक्त एवं श्लेष्मा का निकलना बंद न हो जाय। रोगी को बार्ली का सेवन कराना चाहिए। जब श्लेष्मा का निकलना बंद हो जाय तब उसे पतला साबूदाना, अरारोट, चावल, दही इत्यादि का सेवन करा सकते हैं। इसके अतिरिक्त ऐल्बुमिन जल भी देते हैं।

इसकी मुख्य ओषधियों में डाइहाइड्रॉक्सि क्विनोलीन (Diydroxy quinoline) के योग, क्लोरोक्वीन (chloroquine) के योग तथा इमेटीन (emetine) की सुई योग्य चिकित्सक से मात्रा निर्धारित करके उपयोग करने पर आशातीत लाभ होता है।

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