बचपन में गांधी जी की कौन-सी पहली और आखिरी भूल थी?
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का नाम जब भी हम लेते हैं तो हमारी आंखों के सामने उनकी जो तस्वीर आती है वह बेहद खास होती है। उनका व्यक्तित्व ही अनुकरणीय है जो सबको आकर्षित भी करता है।
हम अपने बच्चों से भी कहते हैं कि वे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की तरह बनें, उनकी तरह ऊंचाइयों को छुए, सबके लिए आदर्श बनें, पर ये सारी बातें बताते हुए हमें यह भी जानना चाहिए कि गांधीजी से भी कभी गलतियां हुई थी।
जी हां, बचपन में गांधीजी से भी कई गलतियां हुई, जैसे आम बच्चों से होती है, पर उनकी खास बात यह थी कि उन्होंने अपनी गलतियों से सीखा, उन्हें त्यागा और कभी नहीं दोहराया।
बस इन्हीं बातों ने उन्हें महात्मा बना दिया। तो आइये जानते हैं कि कब और कैसे हुई गांधीजी से गलतियां, जो बाद में बन गई सबसे बड़ी सीख ...
तो दोस्तों हम जानते ही हैं कि गांधी जी के व्यक्तित्व की सबसे महत्वपूर्ण बात थी उनके सत्य के प्रति आग्रह यानी की सत्य के प्रति तन, मन और वाणी के साथ निष्ठा और उसे जीवन में उतारना। दरअसल इसी सत्य ने गांधी जी के भीतर जब आकार लेना शुरू किया तो, उन्हें महात्मा बना दिया।
बचपन से लेकर युवावस्था में ऐसे लगते थे महात्मा गांधी
जो बुरी आदतें उनके भीतर थीं उन सभी का गांधी जी ने अपनी आत्मकथा सत्य के प्रयोग में वर्णन किया है। एक ऐसे ही संस्मरण का जिक्र उन्होंने किया है जिसमें उन्होंने चोरी करने, झूठ बोलने से लेकर अपने व्यसन करने तक का जिक्र किया है।
सिगरेट पीने की आदत
गांधीजी अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि, मेरे एक रिश्तेदार के साथ मुझे बीड़ी-सिगरेट पीने का चस्का लगा। हमारे पास पैसे तो होते नहीं थे। हम दोनों में से किसी को यह पता नहीं था कि सिगरेट पीने से कोई फायदा होता है या उसकी गंध में कोई आनंद होता है।
लेकिन हमें लगा कि सिगरेट का धुंआ उड़ाने में ही असली मज़ा है। मेरे चाचा को सिगरेट पीने की लत थी। उन्हें और दूसरे बुजुर्गों को धुआं उड़ाते देख हमारी भी सिगरेट फूंकने की इच्छा हुई। गांठ में पैसे तो थे नहीं, इसलिए चाचा सिगरेट पीने के बाद जो ठूंठ फेंक देते, हमने उन्हें ही चुरा कर पीना शुरू कर दिया।
आदर्श बना महात्मा गांधी का जीवन
फिर नौकर की जेब से पैसे चुराए
लेकिन सिगरेट के ये ठूंठ हर समय तो मिल नहीं सकते थे और इनमें से धुआं भी बहुत नहीं निकलता था। इसलिए नौकर की जेब में पड़े पैसों में से एकाध पैसा चुराने की आदत डाली और इन पैसों से हम बीड़ी खरीदने लगे। लेकिन अब सवाल पैदा हुआ कि उसे संभाल कर रखें कहां?
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हम जानते थे कि बुजुर्गों की निगाह के सामने तो हम बीड़ी-सिगरेट पी ही नहीं सकते। जैसे-तैसे दो चार पैसे चुरा कर कुछ हफ्ते काम चलाया। इस बीच पता चला कि एक तरह का पौधा होता है (उसका नाम तो मैं भूल ही गया हूं) जिसके डंठल सिगरेट की तरह जलते हैं और फूंके जा सकते हैं। हमने ऐसे डंठल खोजे और उन्हें सिगरेट की तरह फूंकने लगे।
लेकिन इससे हमें संतोष न हुआ। अपनी पराधीनता हमें अखरने लगी। हमें दु:ख इस बात का था कि बड़ों की आज्ञा के बिना हम कुछ भी नहीं कर सकते थे। हम ऊब गये और हमने आत्महत्या कर फैसला कर डाला!
महात्मा गांधी
आत्महत्या का विचार भी आया
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मोहनदास करमचन्द गांधी (जन्म:२ अक्टूबर १८६९; निधन:३० जनवरी १९४८) जिन्हें महात्मा गांधी के नाम से भी जाना जाता है, भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। उन्हें दुनिया में आम जनता महात्मा गांधी के नाम से जानती है। संस्कृत भाषा में महात्मा अथवा महान आत्मा एक सम्मान सूचक शब्द है। गांधी को महात्मा के नाम से सबसे पहले १९१५ में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने संबोधित किया था। एक अन्य मत के अनुसार स्वामी श्रद्धानन्द ने 1915 मे महात्मा की उपाधि दी थी, तीसरा मत ये है कि गुरु रविंद्रनाथ टैगोर ने महात्मा की उपाधि प्रदान की थी 12अप्रैल 1919 को अपने एक लेख मे । उन्हें बापू (गुजराती भाषा में બાપુ बापू यानी पिता) के नाम से भी याद किया जाता है। एक मत के अनुसार गांधीजी को बापू सम्बोधित करने वाले प्रथम व्यक्ति उनके साबरमती आश्रम के शिष्य थे सुभाष चन्द्र बोस ने ६ जुलाई १९४४ को रंगून रेडियो से गांधी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित करते हुए आज़ाद हिन्द फौज़ के सैनिकों के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगीं थीं। प्रति वर्ष २ अक्टूबर को उनका जन्म दिन भारत में गांधी जयंती के रूप में और पूरे विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के नाम से मनाया जाता है।
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