भाग्य को मुट्ठी में कैसे किया जा सकता है?
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भाग्य को अपनी मुट्ठी में अपने कर्मों के द्वारा किया जा सकता है। भाग्य को अपनी मुट्ठी में करने का तात्पर्य अपने भाग्य का निर्धारण करना है।
मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं होता है। कहते हैं कि ईश्वर हर व्यक्ति का भाग्य बना कर भेजता है। लेकिन सच बात तो यह है कि मनुष्य चाहे तो अपने कर्मों से अपने भाग्य को बदल या नियंत्रित कर सकता है। भाग्य और कर्म एक दूसरे के पूरक हैं। भाग्य कर्म पर ही आधारित है। ईश्वर ने अगर किसी के भाग्य में धनवान बनना लिखा है और यदि वह गरीब है, तो धन उसके जीवन में यूं ही चलकर नहीं आ जाएगा। उसे पहले कर्म करना पड़ेगा तब वह धनवान बनेगा। यानी भाग्य जो लिखा है वह हमसे दूर ना जाए हमारी मुट्ठी में रहे। उसके लिए हमें कर्म नामक पंजे का प्रयोग करना पड़ेगा, जिससे भाग्य हमारी मुट्ठी में रहे।
अगर हम सत्कर्म करेंगे तो हमारा भाग्य सकारात्मक बनेगा। अगर हम कुकर्म करेंगे तो हमारा भाग्य नकारात्मकता वाला बनेगा। मनुष्य जीवन में कैसा भी भाग्य लेकर आएस लेकिन इस जीवन में आने के बाद मनुष्य जैसे-जैसे कर्म करता जाता है, उसका भाग्य वैसा ही बनता चला जाता है। इसलिए कर्मों के द्वारा ही अपने भाग्य को मुट्ठी में किया जा सकता है।