भोजन करत बोल जब राजा , नहि आवत तजी बाल समाज कोशल्या जब बालन जाए, ठुमक ठुमक प्रभु चहली पराई में कोन सा रस ह
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वात्सल्य रस-पुत्रादि के प्रति माता-पिता के स्नेह से वत्सलरस उत्पन्न होता है। असका स्थायी भाव है-वत्साल्य है और पुत्रादि आलंबन हैं। षिरष्चुबंन, आलिंगन आदि अनुभाव हैं और पुत्रादि की चेष्टाएँ उद्दीपन। अनिष्ट, शंका, हर्ष, गर्व आदि को वत्सलरस का संचारी माना गया है। तुलसी के रामचरितमानस में भी यह रस देखने को मिलता है-
(क) संयोग वात्सल्य-
भोजन करत बोल जब राजा। नहिं आवत तजि बाल समाजा॥
कौसल्या जब बोलन जाई। ठुमुक ठुमुक प्रभु चलहिं पराई॥27
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