भ्रष्टाचार पर संस्कृत में निबंध
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भारतवर्षे भ्रष्टाचारः असाध्यरोगवत् प्रवर्तते प्रवर्धते च। ... अयं न केवलं केषुचिदेव जनेषु वर्तते, अपितु वटवृक्षवत् शतमूलः सन् सार्वत्रिको रोगः प्रतिदिनं वर्धत एव। सर्वे जनाः अस्य प्रसारेण चिन्तिताः सन्ति, परन्तु कोSपि सर्वकारः अस्य समूलांमूलनाय बद्धपरिकरः।
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Explanation:
भ्रष्टाचार हमारे देश में बहुत हो रहे हैं जैसे में भ्रूण हत्या बेरोजगारी बहुत सारे ऐसे हैं जो भ्रष्टाचार के उदाहरण है
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