भ्रष्ट नेताओं पर राष्ट्रकवि का प्रहार कविता लक्ष्मीकांत✒️
मैं राष्ट्रकवि का वंशज हूं आखिर कब तक छुप रहुंगा?
सत्ताधिकारीयों का काला चिट्ठा वक्त है,अब खोलूंगा ? ?
सत्ता पाने की लालच में जो धर्म कि पनाह लेते हैं,
ईश्वर,अल्लाह के नारे को जो देशप्रेम से जोड़ देते है
जनता के पैसों पर जो अपने बाप का नाम देते है,
श्री राम नाम की ढोंग से जो सिंहासन को पा लेते हैं
हम कलम के मजदूर उनको करारा जवाब देते हैं
मजहब की बनी -बनाई पगडंडी पर चलकर
देश सिंहासन पर जो खूंखार द्ररिंदे बैठे है,
देवताओं ,धर्म ,जाति ,दलित, पगार के नाम पर,
अनैतिक ढंग से जो मत अधिकारियों का वोट जीते हैं
वो केवल धर्म गुनाहगार नहीं बल्कि देशद्रोही जयचंद बन बैठे हैं
संसद भवन में अब पुजारी घंटी लेकर बैठे हैं
मंदिर में फूल बेचने वाले पार्टी कर कर्ता बन बैठे हैं
जिनको सौंपी बड़ी जिम्मेदारी वहीं चोर बन बैठे हैं
गंगा यमुना को जो अपने घरों में भर रहे हैं
अवाम कि लगान से जो अपने झोली भर रहे हैं
देशरक्षक सैनिकों को अपना गुलाम समझ रहे हैं
साहित्यकार की रचना को जो बेकार समझ रहे हैं
कवि के दर्द भरी कविताओं में, जो केवल आनंद ले रहे हैं
मां भारती की पुत्री को जो अबला नारी समझ रहे हैं
जो जनार्दन के पैसों से लूटकर खाते करते अत्याचार है,
मंदिर की जेवर से जो करते अपनी बीवी का श्रृंगार है
धर्म के बहकावों पर जो करवाते हैं भीषण संहार,
उनको तिरंगा फहराने का किसने दिया अधिकार?
मातृभूमि के आंचल में कैसे पल रहे हैं ऐसे खुखांर
क्यों कर रहे हो जनता जनार्दन तुम इनको स्वीकार?
अपने बच्चों के भविष्य से नहीं करते हो क्या तुम प्यार?
जनता के पैसों से नेता कर लेते हैं जनता पर अधिकार।
प्रजा सिद्ध करो कि धर्म से बढ़कर तुमको मातृभूमि से है प्यार।
अपने मतदान की ताकत से मुल्कवासी तुम करो फर्जी नेताओं का बहिष्कार
इस भारत की दिलों पर धर्मवादी नहीं भारतवादी नेताओं का है पूर्ण अधिकार
भूलो मत यह धर्मनिरपेक्ष भारत इस पर है सभी का पूर्ण अधिकार
मैं जनता को धर्म बताऊंगा, अर्थव्यवस्था समझाउंगा
मैं अर्थव्यवस्था की डोर हूं, आखिर कब तक मौन रहूंगा?
मैं राष्ट्रकवि का वंशज हूं,आखिर कब छुप रहुंगा?
सत्ताधिकारीयों का काला चिट्ठा वक्त है, अब खोलूंगा ?
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sorry I can't no Hindi ok
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भ्रष्ट नेताओं पर राष्ट्रकवि का प्रहार कविता लक्ष्मीकांत✒️
मैं राष्ट्रकवि का वंशज हूं आखिर कब तक छुप रहुंगा?
सत्ताधिकारीयों का काला चिट्ठा वक्त है,अब खोलूंगा ? ?
सत्ता पाने की लालच में जो धर्म कि पनाह लेते हैं,
ईश्वर,अल्लाह के नारे को जो देशप्रेम से जोड़ देते है
जनता के पैसों पर जो अपने बाप का नाम देते है,
श्री राम नाम की ढोंग से जो सिंहासन को पा लेते हैं
हम कलम के मजदूर उनको करारा जवाब देते हैं
मजहब की बनी -बनाई पगडंडी पर चलकर
देश सिंहासन पर जो खूंखार द्ररिंदे बैठे है,
देवताओं ,धर्म ,जाति ,दलित, पगार के नाम पर,
अनैतिक ढंग से जो मत अधिकारियों का वोट जीते हैं
वो केवल धर्म गुनाहगार नहीं बल्कि देशद्रोही जयचंद बन बैठे हैं
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