भारत के आर्थिक विकास में प्रदेशो का वर्गीकरण
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Explanation:
भारत के प्राकृतिक प्रदेश से तात्पर्य भारत को प्राकृतिक तत्वों जैसे उच्चावच, जलवायु की विशेषताएँ, मिट्टियाँ इत्यादि के समेकित आधार पर प्रदेशों में विभाजन से है। कई भूगोलवेत्ताओं द्वारा लगभग सारी प्राकृतिक विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए भारत का प्रदेशों में विभाजन किया गया है। इनमें मैकफरलेन, बेकर (१९२८)[1],एल॰ डडले स्टाम्प (१९२८), स्पेट (१९५४) और आर॰ एल॰ सिंह (१९७१) का वर्गीकरण प्रमुख हैं। इनमें से कुछ को सही अर्थों में प्राकृतिक प्रदेशों में वर्गीकरण नहीं कहा जा सकता क्योंकि इन विद्वानों में से कुछ ने सबसे छोटे स्तर पर प्रदेशों के विभाजन में मानवीय और सांस्कृतिक तत्वों को भी जगह दी है।
मैकफरलेन का वर्गीकरण इस तरह का पहला प्रयास था जो उन्होंने अपनी पुस्तक इकोनोमिक ज्याग्रफी में प्रस्तुत किया। इसमें उन्होंने भारत को दो बृहद प्रदेशों और सोलह उप-प्रदेशों में विभाजित किया। डडले स्टाम्प का वर्गीकरण[2] मुख्यतया भूमि-आकारिकी और जलवायु के तत्वों पर आधारित है और उन्होंने भारत को तीन बृहत् और २२ उप प्रदेशों में विभाजित किया।
इन विद्वानों के वर्गीकरण के आलावा अन्य कई वर्गीकरण भी प्रचलित हैं
ध्यातव्य है कि स्टाम्प महोदय का वर्गीकरण १९२८ ई॰ में प्रकाशित हुआ था और इसमें वर्तमान पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिस्से भी सम्मिलित हैं।
(अ)-पर्वतीय भित्ति
उत्तरी पूर्वी पहाड़ियां
हिमालय प्रदेश
उपहिमालय प्रदेश
तिब्बती पठार
उत्तरी पश्चिमी शुष्क पहाड़ियां
बलूचिस्तान का पठार
(ब) उत्तरी मैदान
निचली सिन्धु घाटी
पंजाब का मैदान
गंगा का उपरी मैदान
गंगा का मध्य मैदान
गंगा का निचला मैदान
ब्रह्मपुत्र घाटी
(स) भारतीय पठार
कच्छ, सौराष्ट्र और गुजरात
पश्चिमी तटीय प्रदेश
कर्नाटक
पूर्वी सरकार
दक्कन प्रदेश
लावा प्रदेश
उत्तरी पूर्वी पठारी भाग
मध्य भारत प्रदेश
राजपुताना का पठार
थार की मरुभूमि
आर॰ एल॰ सिंह ने अपनी पुस्तक भारत का प्रादेशिक भूगोल में भारत को प्रदेशों में बाँटने का सबसे महत्वपूर्ण प्रयास किया है[4] हाँलाकि इनके वर्गीकरण में सबसे सूक्ष्म स्तरीय प्रदेशों को प्राकृतिक नहीं कहा जा सकता क्योंकि इनमें मानवीय तत्वों और क्रियाकलापों को भी स्थान बनाया गया है।
इन्होंने भारत को ४ बृहत्, २८ मध्यम, ६७ प्रथम क्रम, १९२ द्वितीय क्रम और ४८४ तृतीय क्रम के प्रदेशों में विभाजित किया है इसमें बृहत् से लेकर द्वितीय क्रम तक के प्रदेश प्राकृतिक तत्वों के आधार पर हैं अतः प्राकृतिक प्रदेश कहे जा सकते हैं।[5]