Political Science, asked by pk669605, 3 months ago

भारत के गुटनिरपेक्षता को सिद्धांत विहीन क्यों कहा जाता है​

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गुटनिरपेक्षता राष्ट्र हितों के अनुरूप - भारत यह नही चाहता था कि वह किसी गुट में शामिल होकर दूसरे गुट को अपना शत्रु बना ले। समस्त देश उससे मैत्री की कामना करते है तो वह सभी देशों से मैत्री का कामना करता है। साथ ही इस समय किसी गुट में शामिल होना भारत के राष्ट्रीय हितों के अनुकूल नहीं था।  

विश्व शान्ति की इच्छा - भारत की स्वतंत्रता के समय दुनिया दो गुटों में बट चुकी थी। दूसरे विश्व युद्ध को समाप्त हुए कुछ ही समय (2वर्ष) हुए थे अमेरिका तथा सोवियत रूस में तनाव की स्थिति बनी हुई थी। शीत-युद्ध प्रारंभ हो गया था। भारत इस तनाव में नही पडना चाहता था । वह समान रूप से दोनों गुटों से मित्रता का वातावरण बनाना चाहता था।

विदेशी सहायता की आवश्यकता - स्वतंत्रता के समय भारत पिछड़ा हुआ देश था। अंग्रेजी राज्य के शोषण के कारण भारत को आर्थिक पुर्ननिर्माण की भारी आवश्यकता थी। भारत की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए पंचवष्रीय योजनाएं बनानी पड़ी। इन योजनाओं को चलाने के लिए भारत को अधिक धन की आवश्यकता थी, विदेशी सहायता के बिना इनको चलाना असंभव था। हालाकि भारत की स्थिति सुधरती चली गई और आंतरिक साधन जुटा लिए गये।

भारत की भौगोलिक स्थिति - गुटनिरपेक्षता को अपनाने के लिए वाध्य करती है। भारत पश्चिमी गुट के साथ सैनिक गुटबंदी नही कर सकता क्योंकि पश्चिम विरोधी दो प्रमुख शक्ति शाली साम्यवादी देशों की सीमायें भारत की सीमाओं के पास है एक तरफ चीन तथा दूसरी और सोवियत रूस, अगर भारत ने पश्चिमी खेमे में शामिल होकर रूस की सहानुभूति खो दी तो यह निश्चित रूप से अहितकर होगा।

घटनाओं का निष्पक्ष तथा स्वतंत्र मूल्ल्यांकन - भारत किसी भी गुट का पिछलग्गू बनकर नही रहना चाहता था। और न ही स्वतंत्र निर्णय की शक्ति को खोना चाहता था। हमारी प्राचीन परम्परानुसार हम बड़ी साम्राज्य वाली शक्तियों का विरोध करते है। और शोषित देशों का साथ देना तथा उनकी स्वतंत्रता की मांगो का समर्थन करना तथा निष्पक्ष रूप से अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में निर्णय लेना हमारे आदर्श है।

अन्र्तराष्ट्रीय क्षेत्र में स्वतंत्र व्यक्तित्व का विकास हो मान - सम्मान बड़े यह भारत की इच्छा रही है। अन्र्तराष्ट्रीय क्षेत्र में गतिरोधों को दूर करने, गुटों के मतभेदों को बढ़ाने की बजाय उनकों दूर करने का भरसक प्रयत्न करना तथा विश्व-शान्ति की वृद्धि में योगदान आदि कार्य भारत ने प्रमुख रूप से किये।

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