भारत की प्राचीन राजनीतिक पर प्रकाश डालते हुए इसकी विशेषताओ का वर्णन तीन सौ शब्दओ मे किजिए ।
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राज्य ने ही समाज को बांधे रखा है इस कारण धर्मशास्त्रों में भी एक अंग के रूप में राजधर्म का वर्णन किया गया है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि प्राचीन भारत में व्यक्तिवादी और अराजकतावादी विचारों का अभाव रहा। अराजक्तावादियों के अनुसार राज्य अनावश्यक और अनुपयोगी है। व्यक्तिवादी राज्य को 'आवश्यक बुराई' मानते हैं।
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