भारत को विभिन्नताओं का देश क्यों कहा जाता है?
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भौगोलिक दृष्टि से भारत में विविधता दर्शित होती है। 'यदि कोई विदेशी, जिसे भारतीय परिस्थितियों का ज्ञान नहीं है, सारे देश की यात्रा करे तो, वह वहाँ की भिन्नताओं को देखकर यही समझेगा कि, यह एक देश नहीं, बल्कि छोटे-छोटे देशों का समूह है और ये देश एक-दूसरे से अत्यधिक भिन्न है।
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भारत को विविधताओं वाला देश क्यों कहा जाता है?
Avinash Kumar
1 साल पहले जवाब दिया गया
भौगोलिक दृष्टि से भारत विविधताओं का देश है, फिर भी सांस्कृतिक रूप से एक इकाई के रूप में इसका अस्तित्व प्राचीनकाल से बना हुआ है। इस विशाल देश में उत्तर का पर्वतीय भू - भाग, जिसकी सीमा पूर्व में ब्रह्मपुत्र और पश्चिम में सिन्धु नदियों तक विस्तृत है। इसके साथ ही गंगा, यमुना, सतलुज की उपजाऊ कृषि भूमि, विन्ध्य और दक्षिण का वनों से आच्छादित पठारी भू - भाग, पश्चिम में थार का रेगिस्तान, दक्षिण का तटीय प्रदेश तथा पूर्व में असम और मेघालय का अतिवृष्टि का सुरम्य क्षेत्र सम्मिलित है। इस भौगोलिक विभिन्नता के अतिरिक्त इस देश में आर्थिक और सामाजिक भिन्नता भी पर्याप्त रूप से विद्यमान है। वस्तुत: इन भिन्नताओं के कारण ही भारत में अनेक सांस्कृतिक उपधाराएँ विकसित होकर पल्लवित और पुष्पित हुई हैं। भारतीय संस्कृति की विविधता दर्शाने वाले तत्त्व निम्नलिखित हैं -
भौगोलिक विविधता
भौगोलिक दृष्टि से भारत में विविधता दर्शित होती है।
‘यदि कोई विदेशी, जिसे भारतीय परिस्थितियों का ज्ञान नहीं है, सारे देश की यात्रा करे तो, वह वहाँ की भिन्नताओं को देखकर यही समझेगा कि, यह एक देश नहीं, बल्कि छोटे-छोटे देशों का समूह है और ये देश एक-दूसरे से अत्यधिक भिन्न है। जितनी अधिक प्राकृतिक भिन्नताएँ यहाँ हैं, उतनी अन्यत्र कहीं पर नहीं हैं। देश के एक छोर पर उसे हिम मंडित हिमालय दिखाई देगा और दक्षिण की ओर बढ़ने पर गंगा, यमुना एवं ब्रह्मपुत्र की घाटियाँ, फिर विन्ध्य, अरावली, सतपुड़ा तथा नीलगिरी पर्वतश्रेणियों का पठार। इस प्रकार अगर वह पश्चिम से पूर्व की ओर जायेगा तो उसे वैसी ही विविधता और विभिन्नता मिलेगी। उसे विभिन्न प्रकार की जलवायु मिलेगी। हिमालय की अत्यधिक ठण्ड, मैदानों की ग्रीष्मकाल की अत्यधिक गर्मी मिलेगी। एक तरफ़ असम का समवर्षा वाला प्रदेश है, तो दूसरी ओर जैसलमेर का सूखा क्षेत्र, जहाँ बहुत कम वर्षा होती है। इस प्रकार भौगोलिक दृष्टि से भारत में सर्वत्र विविधता दिखाई पड़ती है।’
राजनीतिक विविधता
ऐतिहासिक अध्ययन से ज्ञात होता है कि मौर्य, गुप्त तथा अंग्रेज़ों के शासनकाल को यदि छोड़ दिया जाए तो भारत कभी संगठित नहीं रहा, बल्कि भारत के विभिन्न भागों पर एक ही समय में कई नरेशों ने शासन किया, उदाहरणार्थ - अगर उत्तर भारत पर हर्षवर्धन का शासन था, तो उसी समय बंगाल में पाल वंशीय शासकों का तथा दक्षिण में चालुक्यों का शासन था। अत: कहा जा सकता है कि यहाँ राजनीतिक एकता का अभाव रहा है।
सांस्कृतिक विविधता
भारत के अनेक क्षेत्रों में सांस्कृतिक विविधता दिखाई पड़ती है। यहाँ विभिन्न क्षेत्रों के व्यक्तियों में सांस्कृतिक भिन्नता मिलती है। लोगों का शारीरिक गठन, खान-पान, रहन-सहन, वेश-भूषा, यहाँ तक की मानसिकता भी अलग-अलग प्रकार की है। उदाहरणार्थ - उत्तर भारत में अनेक जगह यथा - दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता आदि में सभ्य, शिक्षित एवं शिष्ट लोग मिलते हैं, तो असम तथा नागालैण्ड में अपेक्षाकृत कुछ कम सुसंस्कृत एवं शिष्ट लोग मिलते हैं।
धार्मिक विविधता
भारत के विभिन्न भागों में अलग-अलग धर्म यथा - हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, पारसी तथा जैन धर्म के अनुयायी रहते हैं। प्रत्येक धर्म भी कई मतों में बंटा हुआ है, उदाहरणार्थ - हिन्दू धर्म जिसे भारत का सर्वाधिक प्राचीन धर्म माना जाता है, वैष्णव, शैव, सनातन, आर्य समाज, राम भक्त, कृष्ण भक्त, कबीर पन्थी, नाथ पन्थी आदि मतों में विभाजित है। अत: विभिन्न धर्म तथा मतों के अनुयायियों में धार्मिक विविधता दिखाई देती है।
भाषा की विविधता
भारत के विभिन्न प्रान्तों में अनेक भाषाएँ अस्तित्व में हैं, जो भिन्न-भिन्न प्रान्तों को परस्पर अलग सा कर देती हैं। साइमन कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार, यहाँ व्यवहार में लाई जाने वाली भाषाओं की संख्या लगभग 222 है। इसके अतिरिक्त भारत के विभिन्न भागों में लगभग 545 भाषाएँ व्यवहार में लाई जाती हैं। इन विभिन्न भाषाओं के कारण भारत में विविधता दर्शित होती है। वर्तमान में भारत के संविधान द्वारा 22 भाषाओं को मान्यता प्रदान की गई है। ये भाषाएँ हैं - हिन्दी, बांग्ला, पंजाबी, गुजराती, मराठी, उड़िया, उर्दू, सिन्धी, असमिया, कश्मीरी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, कोंकणी, मणिपुरी, नेपाली, संस्कृत, डोगरी, संथाली, बोड़ों व मैथिली। कुछ अन्य भाषाओं को भी इस सूची में सम्मिलित करने की माँग की जा रही है।
आर्थिक विविधता
भारत में आर्थिक दृष्टि से भी विविधता व्याप्त है। यहाँ धन का असमान वितरण है। एक तरफ़ ऐसा वर्ग है, जो अथक परिश्रम के पश्चात् दो वक्त की रोटी लायक़ पैसा नहीं कमा पाता है, वहीं दूसरी तरफ़ ऐसा भी वर्ग है, जिसकी आर्थिक स्थिति इतनी सुदृढ़ तथा आय इतनी अधिक है कि इस वर्ग के व्यक्तियों की गणना विश्व के धनाढ्य व्यक्तियों में की जाती है।