भारत की वीरांगनाओ के संदर्भ में अंतरजाल से जानकारी प्राप्त कीजीए और अपनी कॉपी में लिखिए
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सैकड़ों वर्षों तक हिन्दू राजाओं को एक ओर जहां विदेशी आक्रांताओं से लड़ना पड़ा, वहीं उन्हें अपने पड़ोसी राजाओं से मिल रही चुनौती का सामना भी करना पड़ा। मध्यकाल और अंग्रेज काल में कई राजाओं और रानियों को बलिदान देना पड़ा था। ऐसे कई मौके आए, जब राज्य की बागडोर रानियों को संभालना पड़ी और वे हंसते-हंसते देश पर अपनी जान न्योछावर कर गईं।
Explanation:
भारत वीर सपूतों की धरती है और यहां आजादी की लड़ाई में कई वीरांगनाओं ने भी अपना बलिदान दिया था। इसकी मिट्टी से होनहार, बहादुर सुत भी पैदा हुए हैं और सुता भी। भारत तकरीबन एक सदी तक अंग्रेजों का गुलाम रहा। इस गुलामी की बेड़ियों को काटने के लिए हिंदुस्तान की वीरांगनाओं ने अपनी जान की बाजी लगा दी।
1857 के पहले स्वातंत्र्य समर से लेकर 1947 में देश आजाद होने तक ये महिलाएं डटी रहीं और जब आजाद भारत की अपनी लोकतांत्रिक सरकार बनी उस वक्त भी नए भारत के नींव निर्माण में उन्होंने अपना शत प्रतिशत योगदान दिया। आज हम बात करेंगे उन्हीं वीरांगनाओं की, जिनके बलिदान और देश-निर्माण में योगदान के लिए हम सदा उनके ऋणी रहेंगे
कित्तूर की रानी चेन्नम्मा
रानी चेन्नम्मा उन भारतीय शासकों में से हैं जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए सबसे पहली लड़ाई लड़ी थी। 1857 के विद्रोह से 33 साल पहले ही दक्षिण के राज्य कर्नाटक में शस्त्रों से लैस सेना के साथ रानी ने अंग्रेजों से लड़ाई की और वीरगति को प्राप्त हुईं। आज भी उन्हें कर्नाटक की सबसे बहादुर महिला के नाम से याद किया जाता है।
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई
भारत में जब भी महिलाओं के सशक्तिकरण की बात होती है तो महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की चर्चा ज़रूर होती है। आपने शायद ही किसी ऐसे भारतीय के बारे में सुना होगा जो झांसी की रानी के बहादुरी भरे कारनामे सुनते-सुनते न बड़ा हुआ हो। झांसी की रानी सन 1857 के विद्रोह में शामिल रहने वाली प्रमुख शख्सियत थीं। रानी लक्ष्मीबाई के अप्रतिम शौर्य से चकित अंग्रेजों ने भी उनकी प्रशंसा की थी और वह अपनी वीरता के किस्सों को लेकर किंवदंती बन चुकी हैं।
बेगम हजरत महल
बेगम हजरत महल 1857 के विद्रोह के सबसे प्रतिष्ठित चेहरों में से एक हैं। बेगम हजरत महल की हिम्मत का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्होंने मटियाबुर्ज में जंगे-आज़ादी के दौरान नजरबंद किए गए वाजिद अली शाह को छुड़ाने के लिए लार्ड कैनिंग के सुरक्षा दस्ते में भी सेंध लगा दी थी। उन्होंने लखनऊ पर कब्ज़ा किया और अपने बेटे को अवध का राजा घोषित किया। इतिहासकार ताराचंद लिखते हैं कि बेगम खुद हाथी पर चढ़ कर लड़ाई के मैदान में फ़ौज का हौसला बढ़ाती थीं।
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