भारत में आने वाली विभिन्न ऋतुएँ एवं उनके द्वारा मौसम में आए परिवर्तन को संक्षिप्त में लिखिए।
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भारत में मानसूनी प्रकार की जलवायु पायी जाती है। "मानसून" शब्द अरबी शब्द "मौसिम" से बना है, जिसका अर्थ होता है-‘हवा की दिशा में मौसमी परिवर्तन’। भारत का मौसम/ऋतु दो प्रकार की हवाओं से प्रभावित होता हैं– अरब सागर से आने वाली हवाओं से और बंगाल की खाड़ी से आने वाली हवाओं से । भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने भारत की जलवायु को निम्नलिखित चार ऋतुओं में बाँटा है– शीत, ग्रीष्म, वर्षा और शरद ऋतु |शीत ऋतुशीत ऋतु उत्तरी भारत में नवंबर के मध्य से शुरु होकर फरवरी के महीने तक रहती है। शीत ऋतु में तापमान दक्षिण से उत्तर की तरफ बढ़ने के साथ कम होने लगता है। इस ऋतु में पूर्वी तट पर औसत तापमान 24° से 25° सेल्सियस जबकि उत्तर के मैदानी इलाकों में 10°–15° सेल्सियस के बीच रहता है। दिन अपेक्षाकृत गर्म रहते हैं और रातें अपेक्षाकृत ठंडी होती हैं। शीत ऋतु में उत्तरी इलाकों में कोहरा और हिमालय की ऊपरी ढालों पर बर्फबारी सामान्य बात होती है।इस मौसम में, देश में उत्तर–पूर्वी व्यापारिक पवनें (Trade Winds) प्रबल रहती हैं। ये पवनें जमीन से समुद्र की ओर बहती हैं और इसलिए देश के ज्यादातर हिस्सों के लिए यह शुष्क मौसम होता है। इन हवाओं की वजह से तमिलनाडु के तटीय इलाकों में शीत ऋतु में कुछ वर्षा होती है । देश के उत्तरी भाग में इस समय उच्च दबाव का क्षेत्र विकसित होता है। इस मौसम में आसमान आम तौर पर साफ रहता है, तापमान और आर्द्रता कम होती है और हल्की हवाएं चलती हैं।उत्तर के मैदानी इलाकों में पश्चिम और उत्तर-पश्चिम से चक्रवाती विक्षोभों का प्रवाह इस मौसम की विशेषता है। इन्हें पश्चिमी विक्षोभ भी कहा जाता है | निम्न–दबाव वाली ये प्रणालियां भूमध्य सागर और पश्चिम एशिया के ऊपर बनती हैं और पश्चिमी प्रवाह के साथ भारत में प्रवेश करती हैं।इनके कारण उत्तर के मैदानी इलाकों में शीत ऋतु में बारिश होती है और पहाड़ों पर बर्फबारी होती है। वास्तव में उत्तरी भारत की तुलना में भारत के प्रायद्वीपीय इलाकों में शीत ऋतु के दौरान , समुद्र के समकारी प्रभाव के कारण, तापमान के प्रारूप में मौसमी परिवर्तन बहुत ही कम होता है।ग्रीष्म ऋतुग्रीष्म ऋतु मार्च से शुरु होती है और जून-जुलाई तक रहती है। इस समय ‘ग्रीष्म संक्रांति’ (Summer Solistice) के कारण सम्पूर्ण भारत तापमान में वृद्धि का अनुभव करता है। इस मौसम में भारत के उत्तर और उत्तर– पश्चिम भाग में दिन के समय बेहद गर्म हवाएं चलती हैं, जिन्हें ‘लू’ कहा जाता है। इस मौसम में चूंकि सूर्य का उत्तरायण हो जाता है और अंतरा–उष्णकटिबंधीय कन्वर्जेंस जोन (आईटीसीजेड) उत्तर की ओर बढ़ना शुरु कर देता है और जुलाई में 250 उ. अक्षांश के ऊपर स्थित हो जाता है।इस मौसम में जब स्थल की गर्म और शुष्क हवा समुद्र की नम हवाओं से मिलती है, तो उस क्षेत्र में चक्रवात बन जाते हैं। इस चक्रवातों को मॉनसून–पूर्व चक्रवात कहते हैं। ये बेहद तेज हवाएं होती हैं जो भारी वर्षा और ओलावृष्टि लाती हैं। इन चक्रवातों के स्थानीय नाम नीचे दिए गए हैं–नॉरवेस्टर– पूर्वी भारत अर्थात पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडीशा (यह चाय और चावल की खेती के लिए उपयोगी है)।कालबैशाखी– पश्चिम बंगाल ( स्थानीय भाषा में नॉरवेस्टर को कालबैशाखी कहते हैं)।चेरी ब्लासम– कर्नाटक और केरल ( यह कॉफी के फूल के खिलने में उपयोगी है)।आम्र वर्षा – दक्षिण भारत ( यह आमों के समय से पहले पकने के लिए उपयोगी है)बोर्डोचिल्ला– असम ( स्थानीय भाषा में नॉरवेस्टर को बोर्डोचिल्ला कहा जाता है) ।वर्षा ऋतुवर्षा ऋतु मध्य जून से शुरु होकर सितंबर के महीने तक रहती है, और इस मौसम में होने वाली वर्षा का संबंध दक्षिण–पश्चिम मॉनसून के भारत में प्रवेश करने से है । इस मौसम के दौरान, उत्तर के मैदानी इलाकों के ऊपर निम्न–दबाव का क्षेत्र निर्मित हो जाता है, जो दक्षिणी गोलार्द्ध की व्यापरिक पवनों को अपनी ओर आकर्षित करता है। दक्षिणी गोलार्ध की दक्षिण–पूर्वी व्यापारिक पवनें भूमध्य रेखा को पार करती हैं और दक्षिण–पश्चिम दिशा में बहती हुई भारतीय प्रायद्वीप में दक्षिण–पश्चिम मॉनसून के रूप में प्रवेश करती हैं। भारत में दक्षिण–पश्चिम मॉनसून के आने से मौसम में पूरी तरह से परिवर्तन हो जाता है | खासी हिल्स की दक्षिण पवर्तमाला मासिनराम में दुनिया की सबसे अधिक औसत वर्षा होती है। गंगा घाटी में वर्षा पूर्व से पश्चिम की तरफ कम होती जाती है। भारत में दक्षिण–पश्चिम मॉनसून दो शाखाओं–अरब सागर शाखा और बंगाल की खाड़ी शाखा, के माध्यम से आगे बढ़ता है।
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