भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा एवं उसकी विशेषताएँ बताएँ।
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Numismatics is the study or collection of currency, including coins, tokens, paper money and related objects. While numismatists are often characterised as students or collectors of coins, the discipline also includes the broader study of money and other payment media used to resolve debts and the exchange of goods. Early money used by people is referred to as "Odd and Curious", but the use of other goods in barter exchange is excluded, even where used as a circulating currency (e.g., cigarettes in prison). The Kyrgyz people used horses as the principal currency unit and gave small change in lambskins;[1] the lambskins may be suitable for numismatic study, but the horses are not. Many objects have been used for centuries, such as cowry shells, precious metals, cocoa beans, large stones and gems
उत्तर :
भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा एवं उसकी विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है :
वर्षा का समय व मात्रा :
देश के अधिकांश वर्षा मानसूनी पवने द्वारा गर्मी के मौसम में होती है । तीन प्रतिशत वर्षा सर्दियों में और 10% वर्षा मानसून आने से पहले मार्च से मई तक हो जाती है । वर्षा ऋतु जून से मध्य सितंबर के बीच होती है।
अस्थिरता :
भारत में मानसूनी पवनों से प्राप्त वर्षा भरोसे योग्य नहीं है । यह आवश्यक नहीं है कि वर्षा एक समान होती रहे। वर्षा की यह अस्थिरता देश के आंतरिक भागों तथा राजस्थान में अपेक्षाकृत अधिक है।
असमान वितरण :
देश में वर्षा का वितरण समान नहीं है। पश्चिमी घाट की पश्चिमी दलानों और मेघालय तथा असम की पहाड़ियों में 250 सेंटीमीटर से भी अधिक वर्षा होती है । दूसरी और पश्चिमी राजस्थान, पश्चिमी गुजरात , उत्तरी कश्मीर आदि में 20 से 25 सेंटीमीटर से भी कम वर्षा होती है।
अनिश्चितता :
भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा की मात्रा पूरी तरह निश्चित नहीं है। कभी तो मानसूनी पवनें समय से पहले पहुंचकर भरी वर्षा करती हैं। कई स्थानों में तो बाढ़ तक आ जाती है। कभी यह वर्षा इतनी कम होती है या निश्चित समय से पहले ही खत्म हो जाती है कि सूखे की स्थिति पैदा हो जाती है।
शुष्क अंतराल :
कई बार गर्मियों में मानसूनी वर्षा लगातार न होकर कुछ दिन यह सप्ताह के अंतराल से होती है । इसके फलस्वरूप वर्षा चक्र टूट जाता है और वर्षा ऋतु में एक लंबा व शुष्क काल आ जाता है।
पर्वतीय वर्षा :
मानसूनी वर्षा पर्वतों के दक्षिणी ढलान और पवनोन्मुखी ढलान पर अधिक होती है। पर्वतों की उतरी और पवनविमुखी ढलान, वर्षा छाया क्षेत्र में स्थित होने के कारण शुष्क रह जाता है।
मूसलाधार वर्षा :
मानसूनी वर्षा अत्यधिक मात्रा में और कई कई दिनों तक लगातार होती है । इसलिए ही यह कहावत प्रसिद्ध है कि भारत में वर्षा पड़ती नहीं है बल्कि गिरती है।
सच तो यह है कि मानसूनी वर्षा अनिश्चित और असमान स्वभाव लिए हुए हैं। वैसे तो मानसूनी वर्षा भारत के वरदान है और भारत की अर्थव्यवस्था का आधार है। परंतु कभी-कभी अभिशाप बन जाती है। यदि वर्षा की मात्रा कम हो तो सूखे की स्थिति पैदा हो जाती है । वर्षा की मात्रा अधिक होने पर बाढ़ है आती हैं और फसलें नष्ट हो जाती हैं। जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। यदि वर्षा समय पर न हो तो भी किसानों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता।
आशा है कि यह उत्तर आपकी मदद करेगा।।।।।