भारत में जूट उद्योग के प्रमुख महत्व
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भारतीय अर्थव्यवस्था में जूट उद्योग का महत्त्वपूर्ण स्थान है। 19वीं शताब्दी तक यह उद्योग कुटी एवं लघु उद्योगों के रूप में विकसित था एवं विभाजन से पूर्व जूट उद्योग के मामले में भारत का एकाधिकार था। विशेष रूप से कच्चा जूट भारत से स्कॉटलैंड भेजा जाता था।
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जूट वस्त्र उद्योग पूर्वी भारत में विशेष रूप से पश्चिम बंगाल में प्रमुख उद्योगों में से एक है। जूट लगभग 40 लाख किसान परिवारों का समर्थन करता है और 2.6 लाख औद्योगिक श्रमिकों और तृतीयक क्षेत्र में 1.4 लाख को प्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करता है। जूट उद्योग में उत्पादन प्रक्रिया विभिन्न प्रकार की गतिविधियों से गुजरती है, जिसमें कच्चे जूट की खेती, जूट के रेशे का प्रसंस्करण, कताई, बुनाई, ब्लीचिंग, रंगाई, परिष्करण और विपणन दोनों शामिल हैं, कच्चे जूट और इसके तैयार उत्पाद। इसलिए, जूट उद्योग श्रम गहन है और उद्योग द्वारा विभिन्न कठिनाइयों के बावजूद इसका श्रम-उत्पादन अनुपात भी उच्च है। उद्योग की क्षमता का उपयोग लगभग 75 प्रतिशत है। जूट उद्योग रुपये की सीमा में निर्यात आय में योगदान देता है। 1,000 से रु। 1, 200 करोड़ सालाना।
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