भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहकारी संस्थाओं की भूमिका को लिखिए।
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स्वतंत्रता के बाद से आज तक सभी के लिए खाद्य सुरक्षा एक राष्ट्रीय उद्देश्य बन चुकी है। जहां पहले खाद्य सुरक्षा से तात्पर्य पेट भर रोटी उपलब्ध होने से था वहीं आज खाद्य सुरक्षा से आशय भौतिक, आर्थिक और सामाजिक स्थितियों की पहुंच के अलावा संतुलित आहार, साफ पीने का पानी, स्वच्छ वातावरण एवं प्राथमिक स्वास्थ्य रखरखाव तक जा पहुंचा है।
वर्ष 2012 तक देश में खाद्यान्न की मांग में 2.50 करोड़ टन की वृद्धि का अनुमान लगाया गया है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए गेहूं के उत्पादन में 8 मिलियन टन, चावल के उत्पादन में 10 मिलियन टन तथा दालों के उत्पादन मे 2 मिलियन टन वृद्धि करने का लक्ष्य रखा गया है। सरकार की ओर से इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए 25 हजार करोड़ रुपए के विशेष पैकेज की भी घोषणा की गई है। यदि इस लक्ष्य की पूर्ति हो जाए तो निश्चित रूप से गरीबी दूर करने में यह एक सार्थक प्रयास होगा। भारत में हमेशा खाद्य सुरक्षा के मुद्दे पर गंभीरता दिखाई गई और यही वजह है कि वर्ष 1960 में श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व में हरितक्रांति की शुरुआत हुई। जिस अनुपात से जनसंख्या बढ़ी उसके हिसाब से हमने अन्न भी उपजाया लेकिन भुखमरी खत्म नहीं हुई। हरित क्रांति के बाद सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली, अन्त्योदय अन्न योजना, अन्नपूर्णा योजना, डीजल सब्सिडी योजना आदि योजनाएं लागू की। इसके अलावा ‘काम के बदले अनाज’ योजना के माध्यम से गरीबों को राहत देने का प्रयास किया गया फिर भी उम्मीदों के अनुरूप सुधार नहीं हुआ क्योंकि इसका मुख्य कारण यह था कि इन योजनाओं में कुछ कमियां विद्यमान थी जिससे सरकार अवगत नहीं थी। परिणामस्वरूप खाद्यान्न घोटाले की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए सरकार को खाद्य सुरक्षा कानून बनाने की जरूरत महसूस हुई।
भारतीय संविधान की धारा 47 में यह प्रावधान है कि सरकार लोगों का जीवन-स्तर उठाने, आहारों की पौष्टिकता में वृद्धि करने तथा प्राथमिक स्वास्थ्य में सुधार लाने जैसे कार्यों को प्राथमिकता के आधार पर करेगी एवं खाद्य सुरक्षा में पौष्टिक व कैलोरीयुक्त खाद्यान्नों की आपूर्ति स्थानीय स्तर पर उपलब्ध कराएगी। परिणामस्वरूप केन्द्र सरकार ने खाद्य सुरक्षा हेतु अनेक योजनाएं भी लागू की हैं जिससे कि देश की आर्थिक स्थिति में सुधार हो और खाद्य सुरक्षा संबंधी समस्या भी हल हो सके।
सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि फसल बीमा का लाभ सिर्फ 4 प्रतिशत किसानों तक ही पहुंच पाता है, 57 प्रतिशत किसानों को तो फसल बीमा के बारे में जानकारी ही नहीं है कि फसल बीमा कराया जाता है। भारत सरकार द्वारा देश में खाद्यान्न के वितरण एवं रखरखाव की जिम्मेदारी वर्ष 1965 से ही भारतीय खाद्य निगम को सौपी गई है। यह निगम सामग्री को क्रय करने, भंडारण, वितरण एवं बिक्री की व्यवस्था देखता है। इस निगम के माध्यम से अप्रैल 2011 से पिछड़े जिलों और ब्लॉक में रहने वाले गरीबों, अनुसूचित जाति/जनजाति के परिवारों को हर महीने 3 रुपए प्रति किलोग्राम दर से चावल और 2 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से गेहूं उपलब्ध कराया जा रहा है।
भारत आज जिन चुनौतियों का सामना कर रहा है, उनमें से खाद्य सुरक्षा की चुनौती सबसे प्रमुख चुनौतियों में से एक है। स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था ‘‘जो व्यक्ति अपना पेट भरने के लिए जूझ रहा हो उसे दर्शनवाद नहीं समझाया जा सकता है”पहले चरण में देश के 46 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों एवं 28 प्रतिशत शहरी परिवारों को खाद्यान्न उपलब्ध कराने की तैयारी है। प्रति परिवार हर माह 35 किलोग्राम अनाज मुहैया कराए जाने के बाद उसकी मॉनीटरिंग की जाएगी और ग्रामीण के साथ शहरी झोपड़ियों में रहने वालों को भी हर माह तीन रुपए प्रति किलोग्राम की दर से 35 किलोग्राम अनाज दिया जाएगा। वर्तमान में सरकार द्वारा सिर्फ अनाज की व्यवस्था की जा रही है किन्तु बाद में दूसरी वस्तुओं को भी शामिल किया जा सकता है, क्योंकि सिर्फ अनाज की व्यवस्था से ही लोगों की जरूरते पूरी नहीं हो पाएंगी। अतः अनाज के अलावा, दाल, तेल आदि की जरूरत पड़ेगी।
भारत सरकार खाद्य सुरक्षा के प्रति हमेशा प्रयासरत रही है। खाद्यान्न एवं इससे संबंधित क्षेत्रों के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों को शुरू किया गया ताकि कृषक और कृषि दोनों पर सकारात्मक प्रभाव पड़े और अर्थव्यवस्था को खाद्य सुरक्षा जैसी महत्वपूर्ण समस्या का प्रभावी निदान मिल सके।
भारत में खाद्य सुरक्षा
Explanation:
भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने से अभिप्राय बच्चों तथा लोगों को मूलभूत पोषक तत्व पहुंचाना है, जो मनुष्य के लिए आवश्यक होते है परन्तु लोग को गरीबी या फिर अन्य किसी वजह इस पोषक तत्वों से वंचित रहना पड़ता है । जिससे उनका स्वास्थ्य खराब हो जाता है या बहुत कमजोरी आ जाती है और वह कुपोषण का शिकार हो जाते हैं।
भारत सरकार ने इस समस्या से लड़ने के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 भी बनाया है। विभिन्न प्रकार की केंद्रीय व राजकीय योजनाएं लागू की है।
इन योजनाओं तथा इनसे पहले चली आई योजनाओं में गरीब तबके को मुफ्त में दिया जाने वाला अनाज, व स्कूल में सभी बच्चों को मिड-डे मील देना जिसमें सभी प्रकार के पोषक तत्व जो शरीर के लिए आवश्यक हैं, शामिल होते है। तथा आंगनवाड़ियों का चलन की योजनाएं सामिल है।