भारत
मै मि सीचाई के लिए जल की उच्च माग
का ऑलिय सद्य कतिए
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संपादक- मिथिलेश वामनकर/ विजय मित्रा
क्या आप सोचते हैं कि जो कुछ वर्तमान में है, ऐसा ही रहेगा या भविष्य कुछ पक्षों में अलग होने जा रहा है? कुछ निश्चितता के साथ यह कहा जा सकता है कि समाज जनांकिकीय परिवर्तन, जनसंख्या का भौगोलिक स्थानांतरण, प्रौद्योगिक उन्नति, पर्यावरणीय निम्नीकरण, और जल अभाव का साक्षी होगा। जल अभाव संभवत: इसकी बढ़ती हुई माँग, अति उपयोग तथा प्रदूषण के कारण घटती आपूर्ति के आधार पर सबसे बड़ी चुनौती है। जल एक चक्रीय संसाधन है जो पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। पृथ्वी का लगभग 71 प्रतिशत धरातल पानी से आच्छादित है परंतु अलवणीय जल कुल जल का केवल लगभग 3 प्रतिशत ही है। वास्तव में अलवणीय जल का एक बहुत छोटा भाग ही मानव उपयोग के लिए उपलब्ध है। अलवणीय जल की उपलब्धिता स्थान और समय के अनुसार भिन्न-भिन्न है। इस दुर्लभ संसाधन के आवंटन और नियंत्रण पर तनाव और लड़ाई झगड़े, संप्रदायों, प्रदेशों और राज्यों के बीच विवाद का विषय बन गए हैं। विकास को सुनिश्चित करने के लिए जल का मूल्यांकन, कार्यक्षम उपयोग और संरक्षण आवश्यक हो गए हैं। इस आलेख में हम भारत में जल संसाधनों, इसके भौगोलिक वितरण, क्षेत्रीय उपयोग और इसके संरक्षण और प्रबंधन की विधियों पर चर्चा करेंगे।