भारत में पत्थर और धातु से मूर्तियाँ बनाने की कला साथ-साथ चलती रही। आपकी राय में, इन दोनों प्रक्रियाओं के बीच तकनीक, शैली और कार्य/उपयोग की दृष्टि से क्या-क्या समानताएँ और अंतर हैं?
Answers
भारत में पत्थर और धातु से मूर्तियाँ बनाने की कला साथ-साथ चलती रही।
इस प्रश्न में मेरी राय इस प्रकार है, भारतीय मूर्ति कारों में पत्थर की मूर्तियाँ बनाने के साथ धातु और मिश्रधातु बनाने की प्रक्रिया की भी खोज कर ली थी |
दोनों प्रक्रियाओं के बीच समानताएँ:
- दोनों ही प्रक्रियाओं में मानव आकृतियाँ बनाने को महत्व दिया गया है|
- दोनों प्रकार की मूर्तियाँ हिन्दू , बोद्ध ,और जैन धर्म को समर्पित है|
- इन मूर्तियों का उपयोग देवी-देवताओं के कल्पित रूपों को दर्शाने और धर्मों की शिक्षा देने के लिए किया जाता है|
- इन में हिन्दू के देवी-देवताओं के बहुत से सिर और भुजाएँ दिखाई गई है|
- यह मूर्तियाँ गांन्धार , मथुरा , अमरावती मौर्य सिंधु वाकारक, चोल आदि शैली थी|
दोनों प्रक्रियाओं के बीच अंतर :
पत्थर की मूर्तियाँ :
- यह मूर्तियाँ पत्थरों को तराश कर बनाई जाती है| या पत्थरों पर आकृतियाँ उकेरी जाती है|
- इनका मुख्य उपयोग स्मृति और स्मारक चिन्ह बनाने के लिए किया जाता है|
- यह धातु की अपेक्षा कम आकर्षक और चमकदार होती है|
धातु की मूर्तियाँ :
- इस प्रक्रिया में लुप्त मोम से प्रतिरूप बनाया जाता है| फिर उसे धातु को पिघला कर उढेला जाता है|
- इन का उपयोग ज्यादातर सजावट के लिए किया जाता है|
- यह मूर्तियाँ बहुत सुन्दर आकर्षक और चमकदार नहीं होती है|
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भारतीय कला का परिचय कक्षा -11
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