भारत में शिशु मृत्यु दर में कमी के क्या कारण माने जाते हैं
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यह जानकारियां ''इंडिया स्टेट लेवल डिज़ीज बर्डन इनिशिएटिव'' नामक एक रिपोर्ट में किया गया. रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पांच साल से कम उम्र के 68 फीसदी बच्चों की मौत की वजह बच्चे और उसकी मां का कुपोषण है . 83 फीसदी शिशुओं की मृत्यु की वजह जन्म के समय कम वजन और समय पूर्व प्रसव होना है.
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एक अध्ययन के मुताबिक, वर्ष 2000 से भारत में पांच साल की उम्र तक के बच्चों में मृत्युदर 49 प्रतिशत घटी है लेकिन राज्यों के बीच इसमें छह गुना तक और जिलों में 11 गुना तक अंतर है. इसके मुताबिक, वर्ष 2017 में भारत में पांच साल से कम उम्र के 10.4 लाख बच्चों की मौत हुई जिनमें से 5.7 लाख शिशु थे.
इस प्रकार, वर्ष 2000 के मुकाबले 2017 में पांच साल से कम उम्र के 22.4 लाख बच्चों की कम मौतें हुई जबकि शिशुओं की मौत की संख्या में 10.2 लाख की कमी आई. यह जानकारियां ‘‘इंडिया स्टेट लेवल डिज़ीज बर्डन इनिशिएटिव’’ नामक एक रिपोर्ट में किया गया.
रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पांच साल से कम उम्र के 68 फीसदी बच्चों की मौत की वजह बच्चे और उसकी मां का कुपोषण है . 83 फीसदी शिशुओं की मृत्यु की वजह जन्म के समय कम वजन और समय पूर्व प्रसव होना है. अध्ययन में कहा गया कि राज्यों के बीच मृत्युदर में पांच गुना तक और जिलों में आठ गुना तक अंतर है. अध्ययन में कहा गया, ‘‘ पांच वर्ष के बच्चों की मृत्युदर के मुकाबले नवजात बच्चों की मृत्यु दर में कम गिरावट आई और विभिन्न राज्यों और जिलों में भी अंतर है.’’
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अध्ययन में कहा गया, ‘‘अगर वर्ष 2017 में दिखी परिपाटी जारी रही तो भारत पांच वर्ष के बच्चों की मृत्यु दर के मामले में संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2030 के लिए निर्धारित स्थायी विकास लक्ष्य को हासिल कर लेगा लेकिन नवजात शिशु मृत्यु दर में यह संभव नहीं दिख रहा. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत के 34 प्रतिशत जिलों को पांच वर्ष के बच्चों की मृत्युदर में कमी लाने के लिए अधिक प्रयास करना होगा. वहीं 60 जिलों को शिशु मृत्यु दर घटाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी.’’
भारत में जिला स्तर पर बाल मृत्युदर और बाल विकास की असफलता को लेकर पहली बार विस्तृत आकलन पेश किया गया है. इसके मुताबिक, वर्ष 2000 से 2017 के बीच पूरे भारत में तमाम संकेतकों में सुधार हुआ है लेकिन कई राज्यों में जिलों के बीच असमानता बढ़ी है और भारत के जिलों के बीच विशाल अंतर है.
अध्ययन के नतीजे बच्चे के जीवित रहने पर किए गए दो वैज्ञानिक शोधपत्रों का हिस्सा हैं और ऐसे समय पर इन्हें प्रकाशित किया गया है जब देश कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ लड़ रहा है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा कि यह हमें याद दिलाता है कि हमें कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए हरसंभव प्रयास करने चाहिए पर इसके साथ ही, भारत में अन्य अहम स्वास्थ्य मुद्दे और उनसे होने वाली स्वास्थ्य संबंधी हानि का भी ध्यान रखना चाहिए.