भारत में उपभोक्ता संरक्षण पर निबंध
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उचित मूल्य देकर किसी वस्तु अथवा सेवा को प्राप्त करने वाले को उपभोक्ता कहा जाता है। मानवीय विकास के प्रारंभिक दौर मे भौतिक वस्तु अथवा सेवा को क्रय करने वालों के क्रेता कहा जाता था किन्तु विकास के क्रम मे इसे उपभोक्ता नाम दिया गया जो क्रेता से कहीं अधिक व्यापक अर्थ समाहित किए हुए हैं। सामाजिक विकास के साथ ही लोगों की भौतिक आवश्यकतों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए क्रमश: बाजारों का विकास हुआ। इन बाजारों से आज हम अपनी आवश्यकता की सभी चीजें प्राप्त कर सकते हैं। ये चीजें भौतिक भी हो सकती हैं और अभौतिक भी। आज के भौतिकवादी समाज में उपभोक्ता बाजारों के विकास के साथ-साथ बाजारीकरण की प्रवृत्ति तेजी से विकसित हुई है। प्रारंभिक दौर मे जहां छोटे-छोटे बाजार होते थे और क्रेता तथा विक्रता सामाजिक संबंधों से बंधे होते थे वहीं आज उपभोक्ता और क्रेता के मध्य किसी तरह का काई वैयक्तिक संबंध नही रह गया है। यही कारण है कि आज उपभोक्ता के संरक्षण के लिए विभिन्न प्रकार के कानूनों का निर्माण किया गया है।
उपभोक्ता अर्थात क्रेता के अधिकारों के संरक्षण की परम्परा समाज के विकस के साथ ही विकसित हुई है। कौटिल्य के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘अर्थशास्त्र‘ में भी क्रेता के अधिकारों तथा विक्रेता की लोभी प्रवृत्ति का उल्लेख मिलता है। उपभोक्ता के संरक्षण से संबंधित आधुनिक आंदोलन जिसे उपभोक्ता आंदोलन भी कहा जाता है कि शुरूआत 15 मार्च 1962 को अमेरिका से हुई। इस दिन अमेरिका के राष्ट्रपति कैनेडी ने उपभोक्ता के अधिकारों को बिल आफ राइटस में सम्मिलित करने की घोषणा के साथ साथ उपभोक्ता सुरक्षा आयोग के गठन की घोषणा की। इसी उपलक्ष्य में प्रति वर्ष 15 मार्च को विश्व उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है। अमेरिका द्वारा की गयी इस पहल से प्रेरित होकर 1973 में ब्रिटेन में भी व्यापार संबंधी अधिनियम लागू किया गया। अमेरिका के बिल आफ राइटस में शामिल उपभोक्ता अधिकार सूचना, सुरक्षा उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार तथा स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार शामिल कर इसे और सशक्त बनाया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा उपभोक्ता हितों के संरक्षण के लिए कई दिशा-निर्देश भी जारी किए गए। संयुक्त राष्ट्र संघ के इस प्रयास के बाद अमेरिका, यूरोप तथा विश्व के अन्य विकसित एवं विकासशील देशों में उपभोक्ता के संरक्षण की दिशा मे व्यापक रूप से जागरूकता आयी।
इस जागरूकता के अच्छे परिणाम शीघ्र ही दिखाई देने लगे। विनिर्माताओं, विपणनकर्ताओं, तथा विक्रेताओं द्वारा उत्पाद की मात्रा, गुणवत्ता उसके प्रकार, मात्रा एवं मूल्य संबंधी सूचनाओं को उत्पाद पर अंकित करने की परंपरा का विकास इसी जागरूकता का परिणामहै। प्राय: व्यापारीगण मिथ्या एवं भ्रामक प्रचार से विरत रहने लगे। मुनाफाखोरी की प्रवृत्ति पर लगाम लग गयी तथा उत्पाद को बेचने के लिए अनैतिक तरीकों का प्रयोग क्रमश: कम होता गया। उपभोक्ता संरक्षण से संबंधित इस आंदोलन को नया आयाम आर्थिक उदारीकरण तथा बाजार के वैश्वीकरण के बाद मिला। विनिर्माताओं तथा उपभोक्ताओं में इस वैश्वीकरण का प्रभाव परिलक्षित होने लगा। वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों में प्रतिस्पर्धात्मक कमी देखी गयी जो अप्रत्यक्षत: उपभोक्ता के हितों को संरक्षित करता है।
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उपभोक्ता संरक्षण
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उपभोक्ता संरक्षण एक प्रकार का सरकारी नियंत्रण है जो उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करता है।
परिचय
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आज ग्राहक जमाखोरी, कालाबाजारी, मिलावट, बिना मानक की वस्तुओं की बिक्री, अधिक दाम, ग्यारन्टी के बाद सर्विस नहीं देना, हर जगह ठगी, कम नाप-तौल इत्यादि संकटों से घिरा है। ग्राहक संरक्षण के लिए विभिन्न कानून बने हैं, इसके फलस्वरूप ग्राहक आज सरकार पर निर्भर हो गया है। जो लोग गैरकानूनी काम करते हैं, जैसे- जमाखोरी, कालाबाजारी करने वाले, मिलावटखोर इत्यादि को राजनैतिक संरक्षण प्राप्त होता है। ग्राहक चूंकि संगठित नहीं हैं इसलिए हर जगह ठगा जाता है। ग्राहक आन्दोलन की शुरूआत यहीं से होती है। ग्राहक को जागना होगा व स्वयं का संरक्षण करना होगा।
इतिहास
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उपभोक्ता आन्दोलन का प्रारंभ अमेरिका में रल्प नाडेर द्वारा किया गा था। नाडेर के आन्दोलन के फलस्वरूप 15 मार्च 1962 को अमेरिकी कांग्रेस में तत्काली राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी द्वारा उपभोक्ता संरक्षण पर पेश विधेयक को अनुमोदित किया था। इसी कारण 15 मार्च को अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है। अमेरिकी कांग्रेस में पारित विधेयक में चार विशेष प्रावधान थे।
1. उपभोक्ता सुरक्षा के अधिकार।
2. उपभोक्ता को सूचना प्राप्त करने का अधिकार।
3. उपभोक्ता को चुनाव करने का अधिकार।
4. उपभोक्ता को सुनवाई का अधिकार।
अमेरिकी कांग्रेस ने इन अधिकारों को व्यापकता प्रदान करने के लिए चार और अधिकार बाद में जोड़ दिए।
1. उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार।
2. क्षति प्राप्त करने का अधिकार।
3. स्वच्छ वातावरण का अधिकार।
4. मूलभूत आवश्यकताएं जैसे भोजन, वस्त्र और आवास प्राप्त करने का अधिकार।
भारत में उपभोक्ता संरक्षण
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जहां तक भारत का प्रश्न है, उपभोक्ता आन्दोलन को दिशा 1966 में जेआरडी टाटा के नेतृत्व में कुछ उद्योगपतियों द्वारा उपभोक्ता संरक्षण के तहत फेयर प्रैक्टिस एसोसिएशन की मुंबई में स्थापना की गई और इसकी शाखाएं कुछ प्रमुख शहरों में स्थापित की गईं। स्वयंसेवी संगठन के रूप में ग्राहक पंचायत की स्थापना बीएम जोशी द्वारा 1974 में पुणे में की गई। अनेक राज्यों में उपभोक्ता कल्याण हेतु संस्थाओं का गठन हुआ। इस प्रकार उपभोक्ता आन्दोलन आगे बढ़ता रहा। 24 दिसम्बर 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पहल पर उपभोक्ता संरक्षण विधेयक संसद ने पारित किया और राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित होने के बाद देशभर में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम लागू हुआ। इस अधिनियम में बाद में 1993 व 2002 में महत्वपूर्ण संशोधन किए गए। इन व्यापक संशोधनों के बाद यह एक सरल व सुगम अधिनियम हो गया है। इस अधिनियम के अधीन पारित आदेशों का पालन न किए जाने पर धारा 27 के अधीन कारावास व दण्ड तथा धारा 25 के अधीन कुर्की का प्रावधान किया गया है।
उपभोक्ता
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उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अनुसार कोई व्यक्ति जो अपने उपयोग के लिये सामान अथवा सेवायें खरीदता है वह उपभोक्ता है। विक्रेता की अनुमति से ऐसे सामान/सेवाओं का प्रयोग करने वाला व्यक्ति भी उपभोक्ता है। अत: हम में से प्रत्येक किसी न किसी रूप में उपभोक्ता ही है।
उपभोक्ता के अधिकार
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1. उन उत्पादों तथा सेवाओं से सुरक्षा का अधिकार जो जीवन तथा संपत्ति को हानि पहुँचा सकते हैं। 2. उत्पादों तथा सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, प्रभाव, शुद्धता, मानक तथा मूल्य के बारे में जानने का अधिकार जिससे कि उपभोक्ता को अनुचित व्यापार पद्धतियों से बचाया जा सके। 3. जहाँ भी संभव हो, वहां प्रतियोगात्मक मूल्यों पर विभिन्न उत्पादों तथा सेवाओं तक पहुँच के प्रति आश्वासित होने का अधिकार। 4. सुनवाई और इस आश्वासन का अधिकार कि उचित मंचों पर उपभोक्ता के हितों को उपयुक्त विनियोग प्राप्त होगा। 5. अनुचित या प्रतिबंधात्मक व्यापार पद्धतियों या उपभोक्ताओं के अनैतिक शोषण के विरुद्ध सुनवाई का अधिकार। 6. उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार।
शिकायतें क्या-क्या हो सकती हैं?
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किसी व्यापारी द्वारा अनुचित/प्रतिबंधात्मक पध्दति के प्रयोग करने से यदि आपको हानि/क्षति हुई है अथवा खरीदे गये सामान में यदि कोई खराबी है या फिर किराये पर ली गई/उपभोग की गई सेवाओं में कमी पाई गई है या फिर विक्रेता ने आपसे प्रदर्शित मूल्य अथवा लागू कानून द्वारा अथवा इसके मूल्य से अधिक मूल्य लिया गया है। इसके अलावा यदि किसी कानून का उल्लंघन करते हुये जीवन तथा सुरक्षा के लिये जोखिम पैदा करने वाला सामान जनता को बेचा जा रहा है तो आप शिकायत दर्ज करवा सकते हैं।