Hindi, asked by MeghnaaSarkar543, 10 months ago

लोक कथा सच्चा ईनाम। Hindi Lok katha

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Answered by Anonymous
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एक बार की बात है की किसी राज्य में भयानक अकाल पड़ा। राजा ने आज्ञा दी कि अनाज के भंडार व गोदाम प्रजा के लिए खोल दिए जाएं। उसकी आज्ञा का तुरंत पालन हुआ। सभी अनाज के भंडार व गोदाम प्रजा के लिए खोल दिए गए। कुछ दिनों में ही राज्य का भंडार भी खाली हो गया। तब राजा चिंतित हो गए और उन्होंने महल की रसोई में पकने वाला भोजन गरीबों व जरूरतमंदों को बांटने का आदेश दिया। धीरे-धीरे महल का अनाज भंडार भी खाली हो गया। हालत यह हो गई कि एक दिन राज परिवार के पास भी खाने को कुछ नहीं बचा। उस दिन शाम को अचानक एक अजनबी राजा के दरबार में आया, उसके हाथ में एक बड़ा सा कटोरा था, जिसमें दूध, गेहूँ और चीनी से बनी दलिया थी। उसने भूखे राजा को वह कटोरा दे दिया, पर राजा ने उसे चखा भी नहीं। पहले अपने सेवकों को बुलाया और कहा, तुम सबके  भूखे रहते मैं भला अन्न कैसे ग्रहण कर सकता हूँ। सेवक भूखे तो थे, लेकिन राजा को भूखा देख कर उन्होंने अनमने भाव से ही दलिया खाई और उसमें से भी आधी राजा व उसके परिवार के लिए बचा दी। जैसे ही राजा अपने परिवार के साथ वह बची दलिया खाने बैठा, दरवाजे पर एक भूखा ब्राह्मण आ पहुँचा। राजा ने वह भोजन भी भूखे ब्राह्मण को दे दिया। उसे खा कर तृप्त होने के बाद उस ब्राह्मण ने अपना वेश बदला। वह स्वयं भगवान थे, जिन्होंने राजा के धैर्य की परीक्षा लेने के लिए ऐसा रूप धारण किया था। उन्होंने राजा से कहा, मैं तुम्हारे आचरण से अत्यंत प्रसन्न हूँ। तुम मुझ से जो भी वरदान माँगना चाहो, माँग लो। भगवान को सामने पा कर राजा उनके चरणों में गिर पड़ा और बोला, हे प्रभु! मुझे आपकी कृपा से पहले से ही सब-कुछ हासिल है और मैं परलोक की भी चाहत नहीं रखता। मुझे ऐसा हृदय दें जो दूसरों की पीड़ा को महसूस करे और ऐसा मन व तन दें जो दूसरों की सेवा में लगा रहे। भगवान तथास्तु कह कर अंतर्ध्यान हो गए। उसी वर्ष राज्य में जमकर वर्षा हुई और फिर कभी अकाल नहीं पड़ा।  

यह कहानी मूलतः उत्तर भारत की है और आज भी लोग इसे एक-दुसरे को बड़े चाव से सुनाते हैं।

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