भारत में विज्ञान की प्रगति में आई। बाधाओ की विवेचना कीजिए
Answers
भारत में विज्ञान की प्रगति में आई बाधाओं :
भारत गाँव का देश है जहाँ काटों पर आजादी सोती है I हमारे यहाँ ऐसा नहीं है कि यहाँ की मिटटी में वैज्ञानिक,कुशल चिकित्सक साहित्य कला इत्यादि किसी में प्रगति न कर सकें लेकिन सबसे मर्माहत करने वाली बात ये है कि जब कोई अत्यंत मेधावी छात्र लेकिन निर्धन होता है और वे कुछ नयी चीज़ दुनिया के सामने लाकर प्रस्तुत करना चाहता है तो उसके पास कोई साधन नहीं है I सरकार उन बच्चों की मदद सिर्फ मध्याह्न भोजन देकर नहीं कर सकती है I पेट भर सकती है लेकिन अल्बर्ट आइन्स्टाइन ,जेम्स वाट ,सर न्यूटन सरकार पैदा नहीं कर सकती है I होनहार बच्चे के लिए विज्ञान की प्रगति से सम्बंधित बहुत सारे उपकरण भी देने होते हैं I
वशिष्ठ नारायण की बात कीजिये जिस उम्र में ये दुनिया को कुछ दे सकते थे उस उम्र को उन्होंने पागलखाने में काटा एक महान वैज्ञानिक ,खुद अपने ही दिमाग का शिकार होकर रह गए Iवशिष्ठ नारायण सिंह जब Iscमें थे क्लास में प्रोफेसर साइंस पढ़ा रहे थे और वशिष्ठ बाहर के कंपाउंड के अपने ही चिंतन में टहल रहे थे I प्रोफेसर की नज़र पड़ी तो उन्होंने बुलवाया और डांट कर पूछा क्या ये सवाल तुम बना सकते हो I
उन्होंने कहा जी सर यहाँ तो बोर्ड पर एक तरीके से सोल्व किया गया है I मैं इसे 100 तरीके से सोल्व कर सकता हूँ ,इसलिए बहार टहल रहा था I प्रोफ़ेसर चकित रह गए बोला बनाओ -जब पंद्रह तरीके से वशिष्ठ ने सोल्व कर दिया तब बीएससी ,एमएससी सारे फिजिक्स की किताबें मंगवाई I और पूछा क्या इसे सोल्व कर लोगे उन्होंने कहा यस सर I
फिर सारे सवालों को कितने तरह से समझाया प्रिंसिपल तक चकित रह गए I फिर उन्हें पटना में ही वहां के कुलपति नागराजन ने गोवरंमेंट से अनुरोध किया कि हमारे यहाँ अति मेधावी छात्र है इसे तत्काल एमएससी की डिग्री देकर रिसर्चे काम में लगाया जाए बहुत उन्नत्ति होगी Iभले ही इसकी उम्र अभी कम है लेकिन प्रतिभा उम्र को नहीं देखती इनकी बात मानी गयी I
और इन्हें एमएससी की परीक्षा में बिठाकर तत्कालीन प्राचार्य ने स्वयं उत्तर पुस्तक जाँची I तो लगा ये तो एमएससी से भी अधिक योग्यता रखता है Iइसके बाद डिग्री लेकर वशिष्ठ डिग्री लेकर अमेरिका गए वहां जाकर् मात्र 6 महीने में उन्होंने भौतिकी में कई तरह के अनुसन्धान किया I बड़े संभल कर पूरी फाइल रखी लेकिन उनके रूममेट ने ही (जो भारतीय था )उस शोध की चोरी कर ली I अब ये राजनीति थी या हादसा गरीब घर के थे वशिष्ट इनके बार बार पूछने पर भी रूम मेट ने नकार दिया इन्होने ये भी कहा तू ले ले मैं फिर कई तरह से लिख लूँगा I लेकिन जो बातें उसमे लिखी गयी है पर जो बातें उसमे लिखी गयी हैं वे ब्यौरा तो चाहिए I भारत लौटते लौटते वशिष्ठ सिंह पागल हो गए I उनके बड़े भाई उन्हें घर ले गए I
मंत्री पुत्री उनकी पत्नी थी वे भी त्याग करके चली गयी I इसके बाद सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए दर दर भटकते रहे और अंत में रांची के पागलखाने में पड़े रहे जब थोडा उन्हें कुछ याद आता तो स्लेट पेंसिल पर लिखते और बोलते नहीं नहीं मुझे अपना शोध पूरा करना है I वैज्ञानिक बनना है दुनिया को कुछ देना है Iशादी देखी जाएगी और सिर्फ फार्मूला ही बोला करते I इंदिरा सरकार के आने पर उनकी मदद की गयी और बेहतर इलाज के लिए इन्हें अन्यत्र भेजा गया लेकिन इतना बड़ा वैज्ञानिक इलाज के लिए यहाँ वहां भटकता ही रहा और इंदिरा जी की सत्ता चले जाने पर वो इलाज भी ख़त्म हो गया I तब तक बुढ़ापा आ गया फिर भी पागलखाने से निकलने के बाद वो IIT वाले छात्रों का क्लास लेते थे I और खुश रहते थे सुपर 30 का पहला क्लास उन्होंने ही लिया था एक छात्र ने पूछा "IIT की तयारी के लिए कितने घंटे पढाई की आवश्यकता होगी उन्होंने कहा एक घंटा बस "Iऐसे-ऐसे कितने भारतीय वैज्ञानिक बर्बाद हो गए होंगे हमें पता भी नहीं I
"भारत की दुर्दशा अभी भी ख़त्म नहीं हैI
कितने ही हीरे चले गए इसका मर्म नहीं है II"