भारत ने ‘फर्स्ट फ़ास्ट द पोस्ट सिस्टम ‘ को क्यों अपनाया ?
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यह सवाल सुनने में भले ही अजीबोगरीब लगे लेकिन यह ‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम’ (सर्वाधिक मत पाने वाले की जीत की प्रणाली) की वास्तविकता है। संवैधानिक विशेषज्ञों एवं पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों का मानना है कि यह प्रणाली भले ही जनता का सही प्रतिनिधित्व पेश नहीं करती लेकिन यह भारत के मतदाताओं की बड़ी संख्या और सीमित संसाधनों को देखते हुए सबसे अधिक
(उज्मी अतहर एवं आसिम कमाल) नयी दिल्ली, नौ मई (भाषा) क्या जीते हुए उम्मीदवार को 15 प्रतिशत या इससे भी कम वोट मिलने पर उसे सीट का सच्चे अर्थों में जनप्रतिनिधि कहा जा सकता है? यह सवाल सुनने में भले ही अजीबोगरीब लगे लेकिन यह ‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम’ (सर्वाधिक मत पाने वाले की जीत की प्रणाली) की वास्तविकता है। संवैधानिक विशेषज्ञों एवं पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों का मानना है कि यह प्रणाली भले ही जनता का सही प्रतिनिधित्व पेश नहीं करती लेकिन यह भारत के मतदाताओं की बड़ी संख्या और सीमित संसाधनों को देखते हुए सबसे अधिक व्यावहारिक है। ‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम’ के तहत, उम्मीदवार को सीट जीतने के लिए केवल अन्य उम्मीदवारों से अधिक मत प्राप्त करने की जरूरत होती है। संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने कहा कि इस प्रणाली के तहत ‘‘तथाकथित जनप्रतिनिधि’’ कई बार ‘‘बिल्कुल भी जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।’’ उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘सभी लोकसभा सदस्यों और राज्यसभा सदस्यों में से करीब 70 प्रतिशत अल्पमत से निर्वाचित होते हैं।’’ कश्यप ने कहा, ‘‘ऐसी भी घटनाएं हुई हैं जब 12 प्रतिशत, 15 प्रतिशत वोट पाने वाले लोग निर्वाचित हुए हैं और उन्हें उच्च पद प्राप्त हुए हैं।’’ इस प्रणाली पर लंबे समय से बहस और चर्चा चल रही है। इस पर चर्चा 2014 में भी खूब हुई थी जब भाजपा को 2014 आम चुनावों में लोकसभा की 543 में से 282 सीटें प्राप्त हुई थीं और उसका वोट प्रतिशत 31 प्रतिशत से कुछ अधिक रहा था। यह पूछे जाने पर कि क्या भारत आस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों में प्रचलित ‘रैंक च्वाइस वोटिंग’ जैसी प्रणालियों की संभावना पर विचार कर सकता है, कश्यप ने कहा कि भारत को अपना समाधान खोजना होगा और ऐसी प्रणाली अपनाई जानी चाहिए, जो यहां के अनुरूप हो। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय संविधान समीक्षा आयोग ने 2002 की अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि अगर कोई भी उम्मीदवार 50 प्रतिशत से अधिक मत नहीं पाता है तो अगली सुबह दो शीर्ष उम्मीदवारों के बीच चुनावी मुकाबला होना चाहिए। कश्यप ने कहा, ‘‘यह पूरी तरह से व्यावहारिक है। हमने तत्कालीन चुनाव आयुक्त से भी बात की थी। अब इलेक्ट्रानिक वोटिंग के साथ हम शाम को ही पता कर सकते हैं कि कौन जीता और अगली सुबह फिर से मतदान हो सकता है...आयोग की रिपोर्ट पर विचार हुआ और कई सिफारिशें स्वीकार की गईं लेकिन ‘सर्वाधिक मत पाने वाले की जीत की प्रणाली’ को कायम रखा गया।’’ भारत के अलावा यह प्रणाली ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, बांग्लादेश और भूटान में भी अपनाई गई है। वर्ष 2014 लोकसभा चुनावों के दौरान मुख्य चुनाव आयुक्त रहे वी एस संपत ने कहा कि यह प्रणाली ‘‘उपलब्ध विकल्पों में से सर्वश्रेष्ठ विकल्प’’ है। उन्होंने कहा, ‘‘एक दौर का चुनाव कराने में हम देश को 75 दिन के लिए चुनावी माहौल में ले जाते हैं। दो शीर्ष उम्मीदवारों के बीच आपसी मुकाबले से प्रक्रिया लंबी हो जाएगी। यह जटिल हो जाएगा। देश में स्थिरता होनी चाहिए।’’ लोकसभा के पूर्व महासचिव पी डी टी आचार्य का मानना है कि यह प्रणाली भले ही चुनावों में जीते गये उम्मीदवार का सच्चे अर्थों में जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करती लेकिन यह भारत के संदर्भ में सर्वाधिक व्यावहारिक है।
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भारत ने लोकसभा और राज्य विधान सभा के चुनावों के लिए इस प्रणाली को अपनाया।
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- सादगी और जवाबदेही: चुनाव की पीआर प्रणाली काफी जटिल है। यह छोटे देशों में काम कर सकता है लेकिन यह भारत जैसे उपमहाद्वीपीय देश के लिए अनुपयुक्त है। आम मतदाताओं के लिए, एफपीटीपी प्रणाली को समझना और संचालित करना आसान है। मतदाताओं को मतदान करते समय केवल एक उम्मीदवार या पार्टी का चयन करना होता है। मतदाता किसी भी पार्टी या उम्मीदवार को महत्व दे सकते हैं या दोनों के बीच संतुलन बना सकते हैं। पीआर प्रणाली में, मतदाता पार्टियों को वोट देते हैं और प्रतिनिधियों को पार्टी सूची के आधार पर चुना जाता है। नतीजतन कोई भी वास्तविक प्रतिनिधि नहीं है। एफपीटीपी में मतदाता जानते हैं और अपने निर्वाचन क्षेत्र के प्रतिनिधि से संपर्क कर सकते हैं और उन्हें जवाबदेह भी ठहरा सकते हैं।
- स्थिर सरकार: भारतीय संविधान के निर्माताओं ने महसूस किया कि पीआर सिस्टम विधायिका में स्थिर सरकार प्रदान नहीं कर सकता है और पीआर सिस्टम स्पष्ट बहुमत नहीं दे सकता है क्योंकि वोट शेयर के आधार पर विधायिका में सीटें आवंटित की जाती हैं। एफपीटीपी प्रणाली सबसे बड़ी पार्टी या गठबंधन को बहुमत के साथ सरकार बनाने की अनुमति देती है, जो कि शारंग वोटों की पीआर प्रणाली से अधिक हो सकती है। इसलिए एफपीटीपी प्रणाली संसदीय सरकार को स्थिरता प्रदान करती है।
- व्यापक प्रतिनिधित्व: एफपीटीपी प्रणाली विभिन्न समुदायों के प्रतिनिधियों को एक इलाके में चुनाव जीतने के लिए प्रोत्साहित करती है। पीआर प्रणाली प्रत्येक समुदाय को भारत में एक राष्ट्रव्यापी पार्टी बनाने के लिए प्रेरित करेगी क्योंकि राष्ट्र विविध समूहों से भरा है।
इस प्रकार यह उत्तर है।
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