भारतीय अर्थ व्यवस्था ने भूमंडलीकरण के साथ स्वयं को किस प्रकार अनुकूलीत किया? टिप्पणी कीजिए |
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इस भूमण्डलीकरण के कारण अनेक आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक संस्थाओ के स्वरूप में बदलाव आ जाने का खतरा पैदा हो गया है । आज विकासशील देश विकसित देशों से कर्ज लेने के लिए बाध्य है । ये देश आर्थिक विकास की महत्वाकांक्षाएं रखते हुये भी अपनी आर्थिक स्वतन्त्रता बनाये रखने में सक्षम नहीं हैं । परिणामस्वरूप आर्थिक गुलामी का असर उन देशों की सामाजिक-आर्थिक संस्थाओं पर तो पड़ ही रहा है, इन देशों की शिक्षण संस्थाएं भी प्रभावित हो रही हैं ।
इसलिए आज जरूरी यह है कि तथाकथित भूमण्डलीकरण यानी रेदार पूजी और देशी पूजी का जो गठबंधन है, उसे तोड़ा जाये । इसके बिना देश की प्रगति नहीं है । सिंगापुर में विश्व व्यापार संगठन की बैठक में अमरीका की शर्तो के अनुसार समझौता करके की सम्पमुता को गिरवी रख दिया गया है ।
देश की सैन्य एवं प्रौद्योगिक सम्प्रभुता पर इसका असर पडेगा । दुनिया भर में हर चीज सापेक्ष है । पूंजी का केन्द्रीयकरण अन्तत: मुनाफाखोर ही निगल जाता है । विकासशील देशों को स्वयं के शोषण से बचना होगा । इसका एकमात्र का यही है कि विश्व स्तर पर साम्राज्यवाद के विरुद्ध सुविचारित-सुसंगठित मोर्चा खोला जाये । मानवता को जीवित रखना है तो पूजीवाद का खात्मा तो करना ही होगा ।
दुनिया में पूंजीवाद उभार के लिए हमारा ढीलापन ही जिम्मेदार है । आने वाले समय में देश को उदारीकरण के नरे झेलने पडेंगे । उदारीकरण यही की मिश्रित अर्थव्यवस्था का उचित विकल्प नहीं है । आज के आम आदमी के परिश्रम से अर्जित धन का बहुत बड़ा हिस्सा विदेशों को चला जाता है । अपने समय में भारतेन्दु ने सब धन विदेश चलि जाति, इहे अति रबारी’ कहकर तथाकथित आजादी पोल खोल दी है ।
देश में पूंजी निवेश और अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया तेज होने की वजह से निष्कर्ष निकालना मुनासिब होगा कि भविष्य में इसके मिश्रित परिणाम निकलने की सम्भावना । यदि पूंजी निवेश बढता गया तो उत्पादन की प्रक्रिया तेज होगी और रोजगार के नये अवसर पलब्ध होंगे ।
इसका सकारात्मक असर यह होगा कि मध्यवर्ग की आय में वृद्धि होगी । लेकिन । ध्यान रखना पड़ेगा कि इस विकास कै गर्म में कठिनाइयां, विरोधाभास और विसंगतियां भी त्तर्निहित है । इस दिशा मे हुए विकास के साथ-साथ संचार के साधनों-सडकें, परिवहन, बिजली से आधारभूत ढाचे में वृद्धि नहीं हो पा रही है । बढता पूंजी निवेश और पिछड़ती संचार-व्यवस्था बीच संतुलन कायम नहीं होने के कारण क्षेत्रीय असंतुलन बढ़ने का खतरा भी मंडरा रहा है | इस तरह सड़कें, परिवहन आदि ससाधनो में पर्याप्त विकास नहीं होने की वजह से पूंजी निवेश लाभ पिछडे क्षेत्रों को नहीं मिल पाएगा । परिणामस्वरूप पिछडे क्षेत्र पिछड़ते जाएंगे और विकसित क्रमश: विकसित होते चले जाएंगे । नगरी और ग्रामीण जीवन के बीच भी असंतुलन बढ रहा है । गरीब और अमीर के बीच की गाई और चौडी हो रही है ।
नगरीकरण की प्रक्रिया में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ रही है जो इसका रक्षा नहीं है । झुग्गी-झोंपडियों और गाव के लोग नगरों में आकर बस रहे हैं । परिणामस्वरूप, गरों के ससाधनों पर दबाव बढ रहा है । नगरों मे बिजली, पानी, मकान आदि बुनियादी घवश्यकताए कम पड़ती जा रही हैं ।
बाजारतंत्र के हावी होने से अमीर वर्ग के सेवा क्षेत्र गरीबों से अलग खड़े हो रहे हैं । अमीरों घेर गरीबों के लिए अलग-अलग अस्पताल और स्कूल खुल रहे हैं । आम जीवन में यह विरोधाभास घफ उभर रहा है । इसके कारण लोगो से भावात्मक विलगाव चौडा हो रहा है ।
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इस भूमण्डलीकरण के कारण अनेक आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक संस्थाओ के स्वरूप में बदलाव आ जाने का खतरा पैदा हो गया है । आज विकासशील देश विकसित देशों से कर्ज लेने के लिए बाध्य है । ये देश आर्थिक विकास की महत्वाकांक्षाएं रखते हुये भी अपनी आर्थिक स्वतन्त्रता बनाये रखने में सक्षम नहीं हैं । परिणामस्वरूप आर्थिक गुलामी का असर उन देशों की सामाजिक-आर्थिक संस्थाओं पर तो पड़ ही रहा है, इन देशों की शिक्षण संस्थाएं भी प्रभावित हो रही हैं ।
इसलिए आज जरूरी यह है कि तथाकथित भूमण्डलीकरण यानी रेदार पूजी और देशी पूजी का जो गठबंधन है, उसे तोड़ा जाये । इसके बिना देश की प्रगति नहीं है । सिंगापुर में विश्व व्यापार संगठन की बैठक में अमरीका की शर्तो के अनुसार समझौता करके की सम्पमुता को गिरवी रख दिया गया है ।
देश की सैन्य एवं प्रौद्योगिक सम्प्रभुता पर इसका असर पडेगा । दुनिया भर में हर चीज सापेक्ष है । पूंजी का केन्द्रीयकरण अन्तत: मुनाफाखोर ही निगल जाता है । विकासशील देशों को स्वयं के शोषण से बचना होगा । इसका एकमात्र का यही है कि विश्व स्तर पर साम्राज्यवाद के विरुद्ध सुविचारित-सुसंगठित मोर्चा खोला जाये । मानवता को जीवित रखना है तो पूजीवाद का खात्मा तो करना ही होगा ।
दुनिया में पूंजीवाद उभार के लिए हमारा ढीलापन ही जिम्मेदार है । आने वाले समय में देश को उदारीकरण के नरे झेलने पडेंगे । उदारीकरण यही की मिश्रित अर्थव्यवस्था का उचित विकल्प नहीं है । आज के आम आदमी के परिश्रम से अर्जित धन का बहुत बड़ा हिस्सा विदेशों को चला जाता है । अपने समय में भारतेन्दु ने सब धन विदेश चलि जाति, इहे अति रबारी’ कहकर तथाकथित आजादी पोल खोल दी है ।
देश में पूंजी निवेश और अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया तेज होने की वजह से निष्कर्ष निकालना मुनासिब होगा कि भविष्य में इसके मिश्रित परिणाम निकलने की सम्भावना । यदि पूंजी निवेश बढता गया तो उत्पादन की प्रक्रिया तेज होगी और रोजगार के नये अवसर पलब्ध होंगे ।
इसका सकारात्मक असर यह होगा कि मध्यवर्ग की आय में वृद्धि होगी । लेकिन । ध्यान रखना पड़ेगा कि इस विकास कै गर्म में कठिनाइयां, विरोधाभास और विसंगतियां भी त्तर्निहित है । इस दिशा मे हुए विकास के साथ-साथ संचार के साधनों-सडकें, परिवहन, बिजली से आधारभूत ढाचे में वृद्धि नहीं हो पा रही है । बढता पूंजी निवेश और पिछड़ती संचार-व्यवस्था बीच संतुलन कायम नहीं होने के कारण क्षेत्रीय असंतुलन बढ़ने का खतरा भी मंडरा रहा है | इस तरह सड़कें, परिवहन आदि ससाधनो में पर्याप्त विकास नहीं होने की वजह से पूंजी निवेश लाभ पिछडे क्षेत्रों को नहीं मिल पाएगा । परिणामस्वरूप पिछडे क्षेत्र पिछड़ते जाएंगे और विकसित क्रमश: विकसित होते चले जाएंगे । नगरी और ग्रामीण जीवन के बीच भी असंतुलन बढ रहा है । गरीब और अमीर के बीच की गाई और चौडी हो रही है ।
नगरीकरण की प्रक्रिया में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ रही है जो इसका रक्षा नहीं है । झुग्गी-झोंपडियों और गाव के लोग नगरों में आकर बस रहे हैं । परिणामस्वरूप, गरों के ससाधनों पर दबाव बढ रहा है । नगरों मे बिजली, पानी, मकान आदि बुनियादी घवश्यकताए कम पड़ती जा रही हैं ।
बाजारतंत्र के हावी होने से अमीर वर्ग के सेवा क्षेत्र गरीबों से अलग खड़े हो रहे हैं । अमीरों घेर गरीबों के लिए अलग-अलग अस्पताल और स्कूल खुल रहे हैं । आम जीवन में यह विरोधाभास घफ उभर रहा है । इसके कारण लोगो से भावात्मक विलगाव चौडा हो रहा है ।
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