भारतीय किसान | bhartiya Kisan | Indian farmer
कृषि एक लम्बी प्रक्रिया है जिसमें असीम धैर्य की आवश्यकता होती है| भारतीय किसान इसी धैर्य का जीता-जागता उदाहरण है| बीज बोने से लेकर, निराई-गुड़ाई करना, सिंचाई करना, कीटनाशक और खाद देना, खरपतवार हटाना, फसल पकने पर उसकी कटाई-छंटाई व भंडारण फिर कहीं जाकर फसल बेचने का समय आता है| उस पर भी कृषि एक जुआ है| निर्विघ्न हो जाये तो चांदी, नहीं तो रात-दिन आशंका लगी रहती है कहीं कीडे या अन्य जीव नष्ट न कर दे, कहीं अतिवृष्टि, अनावृष्टि या ओलावृष्टि न हो जाये| बाजार में भाव गिर गए तो| ये है भारतीय किसान की व्यथा| हालाँकि आज का किसान न निरक्षर है न ही अज्ञानी| वो नवीन उपकरण काम में लेता है, उन्नत किस्म के बीज खरीदता है, अनेकों किस्म के कीटनाशक का उपयोग जानता है| टी वी रेडियो से बढ़कर इंटरनेट से सूचनाएँ प्राप्त करता है, बाजार भाव पर नजर रखता है| उसे सरकार द्वारा प्रदत्त हितकारी लोन की भी जानकारी रहती है पर फिर भी मेहनतकश तो वो है ही; न इस बात में दो राय है न ही इस बात में कि वो हमारा अन्नदाता है| आज तेजी से शहरीकरण हो रहा है| गावों के युवा कृषि को ठुकराकर शहरों में अपना भविष्य तलाश रहे हैं| एक समय था जब भारत की 80 प्रतिशत जनता गांवों में निवास करती थी पर आज परिदृश्य बदल चुका है| क्या कारण है कृषि से मोहभंग का? प्रमुख कारण है अनिश्चितता| उसकी कमाई में एकरूपता नहीं है| अगर कोई फसल बहुतायत में हो जाये तो उसे नुकसान उठाना पड़ता है| आज भी कृषि उपज मंडियों में भण्डारण की उचित सुविधा नहीं है| दुर्भाग्य से असमय वर्षा हो जाये तो उसकी बोरी में बंद फसल खराब हो जाती है और वो मुआवजे के लिए तरसता रह जाता है| कभी टमाटर-प्याज के दाम आसमान छूते है तो कभी पानी के भाव बिकते है| व्यापारी ओर बिचौलिये उसका जबरदस्त शोषण करते हैं| इसलिए क्रोध में कभी वो टमाटर-प्याज सड़क पर फैलाकर विरोध प्रदर्शन करता है तो कभी निराश होकर आत्महत्या तक कर लेता है| लोकसभा में मुद्दे उठते हैं, लाशों पर राजनीती होती है पर ठोस हल नहीं निकलता| अत: निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि शास्त्री जी का ये नारा सदा प्रासंगिक रहेगा ‘जय जवान- जय किसान|’ सिर्फ वादे या स्वप्नबाग किसान को संतुष्ट नहीं कर सकते| उसकी सुरक्षा और हित के लिए दमदार बीमा योजनायें व्यव्हार में लानी चाहिए| भारतीय उत्पादों के आयत-निर्यात नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए| अगर कोई उत्पाद पर्याप्त मात्र में नहीं हो पाया है तो निर्यात बंद कर देना चाहिए| उसे उसकी अथक मेहनत का उचित पारिश्रमिक देना चाहिए नहीं तो वह दिन दूर नही जब कोई भी किसान बनने को राजी नहीं होगा| अन्नदाता बनने का गौरव भुलाकर सब मजदूरी करने लगेंगे| ये हमारी अर्थव्यवस्था और समाज व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न होगा|
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pls try to ask a genuine and elaborative question so that the answerer can understand what you mean..alright?
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