भारतीय कृषि तथा कृषकों का विकास कैसे हो सकता है?
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भारत एक कृषि प्रधान देश है और भारत के किसान भारत की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के एक मजबूत स्तंभ के समान हैं। भारत में कृषि तथा कृषकों का विकास निम्न प्रकार से हो सकता है...
- भारत की कृषि अधिकतम मानसून पर निर्भर रहती है। अतः ऐसे उपाय काय किए जाएं कि भारत की कृषि की मानसून पर निर्भरता कम हो और मानसून की अनियमितता से छुटकारा मिले। इसके लिए सिंचाई के वैकल्पिक साधनों का विकास आवश्यक है।
- बाढ़ व सूखे के प्रकोप से भारत की कृषि व्यवस्था के लिए निजात पाना नितांत जरूरी है ताकि बाढ़ या सूखे से फसलों को किसी तरह का नुकसान नहीं हो। इसके लिए भी जल संरक्षण और जल संग्रहण जैसे उपाय आजमाए जाने चाहिए।
- कृषि के प्राचीन स्वरूप व उत्पादन में परिवर्तन करके आधुनिक तकनीक और उपाय को आजमाया जाना चाहिए, जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि हो।
- किसानों को शिक्षित एवं जागरूक करना भी एक आवश्यक उपाय हैस ताकि वह कृषि के उन्नत तरीकों को सीख सकें और आधुनिक समय और मांग के अनुसार कृषि का विकास कर सकें।
- किसानों की आर्थिक स्थिति सुधार कर और उन्हें ऋण आदि के चक्र से मुक्ति दिला कर ही उनके विकास को संभव बनाया जा सकता है। इसके लिए सरकार को उचित और सही नीतियां बनाना आवश्यक है।
Answer:
कृषि अर्थशास्त्र (Agricultural economicsgfd fusdhs या Agronomics) मूल रूप में वह विधा थी जिसमें फसलों उत्पादन एवं जानवरों के पालन में अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों का प्रयोग करके इसे अधिक उपयोगी बनाने की कोशिशों का अध्ययन किया जाता था। पहले इसे 'एग्रोनॉमिक्स' कहते थे और यह अर्थशास्त्र की वह शाखा थी जिसमें भूमि के बेहतर उपयोग का अध्ययन किया जाता था।
अर्थशास्त्र में कृषि का विशिष्ट स्थान स्वीकार किया गया है। विकसित, विकासशील एवं अर्द्धविकसित-सभी प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं में आवश्यकतानुसार कृषि के विकास को मान्यता प्रदान की जाती है। खाद्य व्यवस्था, कच्चे माल की उपलब्धि तथा रोजगार प्रदान किये जाने के सम्बन्ध में प्रत्येक राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में कृषि विकास का विशिष्ट स्थान है। नि:सन्देह कृषि के विकास में अनेक अस्थिरताओं से संघर्ष करना पड़ता है। इसके बावजूद भी किसी दृष्टि से कृषि का महत्व खाद्य सामग्री तथा औद्योगिक कच्चे माल की उपलब्धि की दृष्टि से कृषि विकास के महत्त्व को कम नहीं आंका जा सकता। अर्द्धविकसित तथा विकासशील देशों में इनके अतिरिक्त रोजगार उपलब्ध करवाने की दृष्टि से भी कृषि की विशिष्ट भूमिका है।
कृषि अर्थशास्त्र में कृषि के सम्बन्ध में स्थानीय कृषि, कृषि की नवीन व्यहू रचना तथा हरित क्रान्ति, कृषि का आधुनिकीकरण एवं व्यवसायीकरण, कृषि मूल्य नीति, कृषि श्रमिक, वन सम्पदा, ग्रामिण आधारभूत ढाँचा, बंजरभूमि विकास कार्यक्रम, कृषि वित्त, सहकारिता, सहकारिता का उद्गम एवं विकास, सहकारी विपणन, उपभोक्ता सहकारी समितियाँ और औद्योगिक सहकारी समितियाँ आदि विषयों का विस्तृत विवेचन किया जाता है।