भारतीय कृषक का भविष्य speech for ASL for about 2 min
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भारत एक कृषि प्रधान देश है। 70% भारतीय लोग किसान हैं। वे भारत देश के रीढ़ की हड्डी के समान है। खाद्य फसलों और तिलहन का उत्पादन करते हैं। वे वाणिज्यिक फसलों के उत्पादक है। वे हमारे उद्योगों के लिए कुछ कच्चे माल का उत्पादन करते इसलिए वे हमारे राष्ट्र के जीवन रक्त है। भारत अपने लोगों की लगभग 60 % कृषि पर प्रत्यक्ष या पपरोक्ष रूप से निर्भर भारतीय किसान पूरे दिन और रात काम करते है। वह बीज बोते है और रात में फसलों पर नजर रखते भी है। वह आवारा मवेशियों के खिलाफ फसलों की रखवाली करते। वह अपने बैलों का ख्याल रखते है। आजकल, कई राज्यों में बैलों की मदद से खेती करने कि संख्या लगभग खत्म हो गई हैं और ट्रैक्टर की मदद् से खेती कि जाती है। उनकी पत्नीय़ॉ और बच्चों उनके काम में उनकी मदद करते है।
कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार रहा है और अब भी है। इसे सिर्फ सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र के योगदान के रूप में ही नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि कृषि पर बड़ी संख्या में लोगों की निर्भरता और औद्योगिकीकरण में कृषि क्षेत्र की भूमिका के रूप में भी देखा जाना चाहिए। देश में कई महत्त्वपूर्ण उद्योग कृषि उत्पाद (उपज) पर निर्भर हैं जैसे कि वस्त्र उद्योग, चीनी उद्योग या फिर लघु व ग्रामीण उद्योग, जिनके अंतर्गत तेल मिलें, दाल मिलें, आटा मिलें और बेकरी आदि आते हैं।
आजादी के बाद से भारतीय कृषि ने काफी बढ़िया काम किया है। वर्ष 1950-51 में खाद्यान्न उत्पादन 5.083 करोड़ टन था जो 1990-91 में बढ़कर 17.6 करोड़ टन हो गया। इस प्रकार खाद्यान्न उत्पादन में लगभग 350 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी। तिलहन, कपास और गन्ने के उत्पादन में भी इसी प्रकार की वृद्धि दर्ज की गई है। परिणामस्वरूप, जनसंख्या में भारी वृद्धि होने के बावजूद अनेक कृषि जिन्सों की प्रति व्यक्ति उपलब्धता में सुधार आया है। विकास प्रक्रिया की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इस बात का प्रमाण हमें इस तथ्य से पता चलता है कि हाल के वर्षों में सूखे वाले वर्ष में खाद्यान्न उत्पादन और उससे पहले के अधिक उत्पादन वाले वर्ष के खाद्यान्न का अंतर, पचास और साठ के दशकों की तुलना में कम है। अब हमें कुपोषण या अल्प-पोषण की वजह से अकाल व महामारी जैसी स्थितियों का सामना नहीं करना पड़ता है जैसा कि सदी के आरम्भिक दौर में करना पड़ता था।
मुख्य रूप से सिंचाई सुविधाओं के विस्तार की बदौलत यह स्थिति आई है। इस समय कुल बुआई क्षेत्र के 32 प्रतिशत हिस्से में सिंचाई सुविधाएँ उपलब्ध हैं। कृषि विकास की प्रक्रिया में बड़ी संख्या में किसानों द्वारा आधुनिक तौर तरीके अपनाया जाना और सरकारी निजी व सहकारी क्षेत्रों में किसानों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए संस्थानों के जाल बिछाने से भी मदद मिली है।
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कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार रहा है और अब भी है। इसे सिर्फ सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र के योगदान के रूप में ही नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि कृषि पर बड़ी संख्या में लोगों की निर्भरता और औद्योगिकीकरण में कृषि क्षेत्र की भूमिका के रूप में भी देखा जाना चाहिए। देश में कई महत्त्वपूर्ण उद्योग कृषि उत्पाद (उपज) पर निर्भर हैं जैसे कि वस्त्र उद्योग, चीनी उद्योग या फिर लघु व ग्रामीण उद्योग, जिनके अंतर्गत तेल मिलें, दाल मिलें, आटा मिलें और बेकरी आदि आते हैं।
आजादी के बाद से भारतीय कृषि ने काफी बढ़िया काम किया है। वर्ष 1950-51 में खाद्यान्न उत्पादन 5.083 करोड़ टन था जो 1990-91 में बढ़कर 17.6 करोड़ टन हो गया। इस प्रकार खाद्यान्न उत्पादन में लगभग 350 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी। तिलहन, कपास और गन्ने के उत्पादन में भी इसी प्रकार की वृद्धि दर्ज की गई है। परिणामस्वरूप, जनसंख्या में भारी वृद्धि होने के बावजूद अनेक कृषि जिन्सों की प्रति व्यक्ति उपलब्धता में सुधार आया है। विकास प्रक्रिया की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इस बात का प्रमाण हमें इस तथ्य से पता चलता है कि हाल के वर्षों में सूखे वाले वर्ष में खाद्यान्न उत्पादन और उससे पहले के अधिक उत्पादन वाले वर्ष के खाद्यान्न का अंतर, पचास और साठ के दशकों की तुलना में कम है। अब हमें कुपोषण या अल्प-पोषण की वजह से अकाल व महामारी जैसी स्थितियों का सामना नहीं करना पड़ता है जैसा कि सदी के आरम्भिक दौर में करना पड़ता था।
मुख्य रूप से सिंचाई सुविधाओं के विस्तार की बदौलत यह स्थिति आई है। इस समय कुल बुआई क्षेत्र के 32 प्रतिशत हिस्से में सिंचाई सुविधाएँ उपलब्ध हैं। कृषि विकास की प्रक्रिया में बड़ी संख्या में किसानों द्वारा आधुनिक तौर तरीके अपनाया जाना और सरकारी निजी व सहकारी क्षेत्रों में किसानों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए संस्थानों के जाल बिछाने से भी मदद मिली है।
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