भारतीय मजदूर घोर परिश्रमी होते है पर निबंध लिखे
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मजदूर हमारे समाज का वह भाग है जिस पर समस्त आर्थिक उन्नति टिकी होती है. आज के मशीनी युग में भी उसकी महत्ता कम नहीं हुई है. उद्योग, व्यापार, कृषि, भवन निर्माण, पुल एवं सड़कों का निर्माण आदि सभी क्रियाकलापों में मजदूरों के श्रम का योगदान महत्वपूर्ण होता है.
एक मजदूर देश के निर्माण में बहुमूल्य भूमिका निभाता है और उसका देश के विकास में अहम् योगदान होता है. मजदूरों के बिना किसी भी औध्योगिक ढांचे के खड़े होने की कल्पना नहीं की जा सकती. इसलिए मजदूरों का समाज में अपना ही एक स्थान है, लेकिन आज भी देश में मजदूरों के साथ अन्याय और शोषण होता है.
उन्नत देशों के मजदूर और भारत के मजदूर में जमीन आसमान का अंतर है. वहां के मजदुर भी सम्मानित हैं. उसके पास सुख साधनों की कमी नहीं है. उन्नत देशों में मजदूरी बहुत मेहेंगी है. वहां मजदूर कम और काम अधिक है इसलिए बड़े-बड़े पूंजीपति, मालिक और नागरिक मजदूर के इर्द-गिर्द घुमते हैं तथा उन्हें अच्छी मजदूरी देते हैं.
लेकिन भारतीय मजदूर का जीवन घोर परिश्रमी की कहानी है. भारत में मजदूरों की स्थिति अच्छी नहीं है. वह मुँह-अँधेरे जगता है तथा दिन भर हाड़-तोड़ परिश्रम करता है. प्रातः 8 से सायं 5 बजे तक अथक परिश्रम करने से उनका तन चूर-चूर हो जाता है. उसके पास इतनी ताकत कठिनता से बचती है की वह आराम की ज़िन्दगी जी सके.
मजदूरों का शोषण इतना होता है की व मुश्किल से दो वक़्त का भोजन कर पाते हैं. भारत में जनसंख्या इतनी अधिक है की ढेर सारे मजदूर खाली रह जाते हैं. परिणामस्वरुप मजदूरी सस्ती हो जाती है इसलिए पेट भरने योग्य, तन ढकने योग्य और सर छिपाने योग्य मजदूरी नहीं मिलती.
आज बेशक भारत में मजदूरों के 8 घंटे काम करने का संबंधित कानून लागू है लेकिन इसका पालन सिर्फ सरकारी कार्यालय ही करते हैं. देश के अधिकतम प्राइवेट कंपनियां या फैक्ट्रियां अब भी अपने यहाँ काम करने वालों से 12 घंटे तक काम कराते हैं. जो की एक प्रकार से मजदूरों का शोषण है.
मजदूरों से अधिक समय तक काम तो कराते ही हैं लेकिन उसके बदले उन्हें कम मजदूरी दी जाती है. मजदूरों की समस्या का सबसे बड़ा कारण है अज्ञान और अशिक्षा. अधिकांश मजदूर पढ़े-लिखे नहीं होते न ही उनके पास पढाई के लिए धन और अवसर होता है. इस कारण वे अज्ञान, अशिक्षा और अंधविश्वास में जीते हैं.
अज्ञान के ही कारण वो पढ़े-लिखों की दुनिया में ठगे जाते हैं. डॉक्टर उन्हें अधिक मुर्ख बनाते हैं. दूकानदार भी उनसे अधिक पैसे वसूलते हैं. बस या गाडी कहीं भी हो उन्हें सम्मानपूर्वक बैठने भी नहीं दिया जाता. मजदूरी और गरीबी के कारण लोग उनकी घोर अपेक्षा करते हैं.
उनका पूरा दिन कमाने-खाने में ही बीत जाता है इसलिए वो अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा भी नहीं पाते. आज भी देश में ऐसे मजदूर हैं जो 1500-2000 मासिक मजदूरी पर काम कर रहे हैं.