Political Science, asked by mahipal404540, 8 months ago

भारतीय राज्य व्यवस्था में जाति व्यवस्था के प्रभाव पर चर्चा करें।​ 500 word

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Answered by Anonymous
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भारत में जाति व्यवस्था लोगों को चार अलग-अलग श्रेणियों - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र - में बांटती है। यह माना जाता है कि ये समूह हिंदू धर्म के अनुसार सृष्टि के निर्माता भगवान ब्रह्मा के द्वारा अस्तित्व में आए। पुजारी, बुद्धिजीवी एवं शिक्षक ब्राह्मणों की श्रेणी में आते हैं और वे इस व्यवस्था में शीर्ष पर हैं और यह माना जाता है कि वे ब्रह्मा के मस्तक से आए है।

इसके बाद अगली पंक्ति में क्षत्रिय हैं जो शासक एवं योद्धा रहे हैं और यह माना जाता है कि ये ब्रहमा की भुजाओं से आए। व्यापारी एवं किसान वैश्य वर्ग में आते हैं और यह कहा जाता है कि ये उनके जांघों से आए और श्रमिक वर्ग जिन्हें शूद्र कहा जाता है वे चौथी श्रेणी में हैं और ये ब्रह्मा के पैरों से आये हैं ऐसा वर्ण व्यवस्था के अनुसार माना जाता है।

इनके अलावा एक और वर्ग है जिसे बाद में जोड़ा गया है उसे दलितों या अछूतों के रूप में जाना जाता है। इनमें सड़कों की सफाई करने वाले या अन्य साफ-सफाई करने वाले क्लीनर वर्ग के लोगों को समाहित किया गया। इस श्रेणी को जाति बहिष्कृत माना जाता था।

ये मुख्य श्रेणियां आगे अपने विभिन्न पेशे के अनुसार लगभग 3,000 जातियों और 25,000 उप जातियों में विभाजित हैं।

मनुस्मृति, जो हिंदू कानूनों का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है, के अनुसार, वर्ण व्यवस्था समाज में आदेश और नियमितता स्थापित करने के लिए अस्तित्व में आया। यह अवधारणा 3000 साल पुरानी है ऐसा कहा जाता है और यह लोगों को उनके धर्म (कर्तव्य) एवं कर्म (काम) के आधार पर अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित करता है।

देश में लोगों का सामाजिक एवं धार्मिक जीवन सदियों से जाति व्यवस्था की वजह से काफी हद तक प्रभावित रहा है और यह प्रक्रिया आज भी जारी है जिसका राजनीतिक दल भी अपने-अपने हितों को साधने में दुरूपयोग कर रहे हैं।

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