Political Science, asked by bhuppyjaiswal1999, 5 months ago

भारतीय राजनीतिक चिंतन की विशेषताएं​

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Answered by Anonymous
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Answered by manjumanhas555
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सामान्यतः राजनीतिक चिन्तन को केवल पश्चिम की ही परम्परा एवं थाती माना जाता है परन्तु भारत की लगभग पाँच हजार वर्षों से भी अधिक प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति में राजनीतिक चिन्तन की पर्याप्त गौरवशाली परम्परा रही है। पाश्चात्य राजनीतिक चिन्तन की तुलना में भारतीय राजदर्शन व्यापक धर्म की अवधारणा से समृद्ध है तथा उसका स्वरूप मुख्यतः आध्यात्मिक एवं नैतिक है। मनु, कौटिल्य तथा शुक्र के चिन्त में धर्म, आध्यात्म, इहलोक संसार, समाज, मानव जीवन, राज्य संगठन आदि के एकत्व एवम् पारस्परिक सम्बन्धों का तानाबाना पाया गया है।

आधुनिक काल में भारतीय राजनीतिक दर्शन और संस्कृति के व्यवस्थित अध्ययन का आरम्भ १८वीं शताब्दी के अन्त में मानी जाती है। सन् 1784 में बंगाल में एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना होने के बाद राजनीतिक विचारों को एक नई दिशा मिली। इसमें कोई सन्देह नहीं कि इस सोसायटी की स्थापना में ब्रिटिश हित भी छिपे हुये थे जो अपनी सत्ता को सुदृढ करने के लिए भारतीय परम्पराओं और उसके इतिहास का परिचय प्राप्त करना चाहते थे। लेकिन एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना से भारतीय राजनीति को भी हवा मिली। 19वीं शताब्दी के आरम्भ में दर्शन और धर्म के अनेक प्राचीन ग्रन्थों का संस्कृत से अंग्रेजी तथा अन्य यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद कर लिया गया था।

पश्चिम के वर्चस्व को स्वीकार करते हुए अंग्रेजी सभ्यता, संस्कृति, राजनीति एवं उद्योगवाद को देखकर उनकी सफलता तथा अपनी दयनीय दुरावस्था के कारकों को समझने का प्रयास राजा राममोहन राय ने किया। दयानन्द सरस्वती ने वेद, वैदिक सभ्यता और संस्कृति के गौरवपूर्ण वैभव को पुनः प्राप्त करने के लिए विवेकपूर्ण सनातन आर्य धर्म का मार्ग प्रशस्त किया।

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