भारतीय संस्कृति में कितने ऋणों का उल्लेख किया गया है?
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1.देव ऋण : माना जाता है कि देव ऋण भगवान विष्णु का है। यह ऋण उत्तम चरित्र रखते हुए दान और यज्ञ करने से चुकता होता है। जो लोग धर्म का अपमान करते हैं या धर्म के बारे में भ्रम फैलाते या वेदों के विरुद्ध कार्य करते हैं, उनके ऊपर यह ऋण दुष्प्रभाव डालने वाला सिद्ध होता है।
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2.ऋषि ऋण : यह ऋण भगवान शंकर का है। वेद, उपनिषद और गीता पढ़कर उसके ज्ञान को सभी में बांटने से ही यह ऋण चुकता हो सकता है। जो व्यक्ति ऐसा नहीं करता है उससे भगवान शिव और ऋषिगण सदा अप्रसन्न ही रहते हैं। इससे व्यक्ति का जीवन घोर संकट में घिरता जाता है या मृत्यु के बाद उसे किसी भी प्रकार की मदद नहीं मिलती।
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3.पितृ ऋण : यह ऋण हमारे पूर्वजों का माना गया है। पितृ ऋण कई तरह का होता है। हमारे कर्मों का, आत्मा का, पिता का, भाई का, बहन का, मां का, पत्नी का, बेटी और बेटे का। स्वऋण या आत्म ऋण का अर्थ है कि जब जातक, पूर्व जन्म में नास्तिक और धर्म विरोधी काम करता है, तो अगले जन्म में, उस पर स्वऋण चढ़ता है। मातृ ऋण से कर्ज चढ़ता जाता है और घर की शांति भंग हो जाती है।