भारतीय संस्कृति में नारी धर्म पर निबंध
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भारतीय संस्कृति में तो स्त्री ही सृष्टि की समग्र अधिष्ठात्री है। पूरी सृष्टि ही स्त्री है, क्योंकि इस सृष्टि में बुद्दि, निद्रा, सुधा, छाया, शक्ति, तृष्णा, जाति, लज्जा, शांति, श्रद्धा, चेतना और लक्ष्मी आदि अनेक रूपों में स्त्री ही व्याप्त है। इसी पूर्णता से स्त्रियां भाव-प्रधान होती हैं।उनके शरीर में केवल हृदय ही होता है, बुद्दि में भी हृदय ही प्रभावी रहता है, तभी तो गर्भधारण से पालन पोषण तक असीम कष्ट में भी उन्हें आनंद की अनुभूति होती है। कोई भी हिसाबी चतुर यह कार्य एक पल भी नहीं कर सकता।भावप्रधान नारी चित्त ही पति, पुत्र और परिजनों द्वारा वृद्दावस्था में भी अनेकविधि कष्ट दिए जाने के बावजूद उनके प्रति शुभशंसा रखती है, उनका बुरा नहीं करती। जबकि पुरुष तो ऐसा कभी कर ही नहीं सकता, क्योंकि नर विवेक प्रधान है, हिसाबी है, विवेक हिसाब करता है, घाटा-लाभ जोड़ता है और हृदय हिसाब नहीं करता। जयशंकर प्रसाद ने कामायनी में लिखा है -
यह आज समझ मैं पाई हूं कि
दुर्बलता में नारी हूं ।
अवयन की सुंदर कोमलता
लेकर में सबसे हारी हूं ।नारी जीवन का चित्र यही
क्या विकल रंग भर देती है।
स्फुट रेखा की सीमा में
आकार कला को देती है।।
परिवार व्यवस्था हमारी सामाजिक व्यवस्था का आधार स्तंभ है। इसके दो स्तंभ हैं - स्त्री और पुरुष। परिवार को सुचारू रूप देने में दोनों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। समय के साथ मानवीय विचारों में बदलाव आया है। कई पुरानी परंपराओं, रूढ़िवादिता एवं अज्ञान का समापन हुआ है। महिलाएं अब घर से बाहर आने लगी हैं, कदम से कदम मिलाकर सभी क्षेत्रों में अपनी धमाकेदार उपस्थिति दे रही हैं, अपनी इच्छा शक्ति के कारण सभी क्षेत्रों में अपना परचम लहरा रही हैं।
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भारतीय समाज में नारी को लक्ष्मी देवी का रूप समझा जाता है। नर और नारी जीवन के दो पहिये माने जाते है। दोनों का समाज में समान महत्व होता है। प्राचीन भारत के समय नारी स्वतंत्र थी, महिलाओं पर किसी प्रकार का कोई प्रतिबन्ध नहीं था
Explanation:
भारतीय संस्कृति में नारी धर्म पर निबंध
नारी शब्द ही शक्तिस्वरूप है इसके अन्य पर्यायवाची स्त्री भामिनी कांता महिला आदि हैं। नारी के लिए सबसे अधिक प्रयोग में आने वाले शब्द स्त्री व महिला हैं। स्त्री शब्द स्त्यै धातु से बना है जिसका अर्थ है सिकुड़ना इकट्ठा करना सहेजना बनाना समेटना, वास्तव में यह सब स्त्री के स्वभाव में होते हैं। महिला शब्द मह धातु के मही शब्द से बना है मही का अर्थ है पृथ्वी। इस अर्थ में महिला पृथ्वी की तरह ही सहनशील, उर्जा से परिपूर्ण, अनेक रहस्यों को अपने में छुपाए रखने वाली तथा सर्वदा दाता होती है धरती जैसे इन गुणों को धारण करने के कारण महिला को पूजनीय कहते हैं। उर्दू भाषा में नारी को ‘जनानी’ भी कहा जाता है यह शब्द भी संस्कृत भाषा के ‘जननी’ शब्द का ही एक रूप लगता है जिसका अर्थ है जन्म दात्री। वास्तव में नारी का पूर्ण स्वरूप मातृत्व में ही विकसित होता है। भारतीय संस्कृति में तो नारी ही सृष्टि की समग्र अधिष्ठात्री मानी जाती है। पूरी सृष्टि ही स्त्री है सृष्टि के विभिन्न रूपों में स्त्री ही व्याप्त है। नारी भावों की अभिव्यक्ति है। पारंपरिक दर्शन में बेशक पुरुष प्रधान समाज दिखता हो किंतु भारतीय दर्शन और संस्कृति की मूल अवधारणा में नारी ही शक्तिस्वरूपा है। भारतीय नारी ने अपने त्याग और तपस्या की शक्ति से भारतीय संस्कृति को पाला पोसा है।
भारतीय संस्कृति और भारत की अस्मिता की रक्षा करके भारतीय संस्कृति के संरक्षण में अपना योगदान देने वाली माताओं में सतयुग से लेकर आज तक अनेक भारतीय नारियों का नाम आता है।