भारतीय समाज में स्त्रियों निरंतर सशक्त हो रही है भारत की यह बहादुर बेटियां पाठ में इसके स्पष्ट संकेत देखने को मिलते हैं? टिप्पणी कीजिए
Answers
Answer:
here is your answer.✌ hope it helps you.
Explanation:
भारत में महिलाओं की स्थिति ने पिछली कुछ सदियों में कई बड़े बदलावों का सामना किया है।[4][5] प्राचीन काल[6] में पुरुषों के साथ बराबरी की स्थिति से लेकर मध्ययुगीन काल[7] के निम्न स्तरीय जीवन और साथ ही कई सुधारकों द्वारा समान अधिकारों को बढ़ावा दिए जाने तक, भारत में महिलाओं का इतिहास काफी गतिशील रहा है। आधुनिक भारत में महिलाएं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोक सभा अध्यक्ष, प्रतिपक्ष की नेता आदि जैसे शीर्ष पदों पर आसीन हुई हैं।
इतिहास संपादित करें
विशेष रूप से महिलाओं की भूमिका की चर्चा करने वाले साहित्य के स्रोत बहुत ही कम हैं ; 1730 ई. के आसपास तंजावुर के एक अधिकारी त्र्यम्बकयज्वन का स्त्रीधर्मपद्धति इसका एक महत्वपूर्ण अपवाद है। इस पुस्तक में प्राचीन काल के अपस्तंभ सूत्र (चौथी शताब्दी ई.पू.) के काल के नारी सुलभ आचरण संबंधी नियमों को संकलित किया गया है।[8] इसका मुखड़ा छंद इस प्रकार है:
मुख्यो धर्मः स्मृतिषु विहितो भार्तृशुश्रुषानम हि :
स्त्री का मुख्य कर्तव्य उसके पति की सेवा से जुडा हुआ है।
जहाँ सुश्रूषा शब्द (अर्थात, “सुनने की चाह”) में ईश्वर के प्रति भक्त की प्रार्थना से लेकर एक दास की निष्ठापूर्ण सेवा तक कई तरह के अर्थ समाहित हैं।[9]
प्राचीन भारत संपादित करें
विद्वानों का मानना है कि प्राचीन भारत में महिलाओं को जीवन के सभी क्षेत्रों में पुरुषों के साथ बराबरी का दर्जा हासिल था।[10] हालांकि कुछ अन्य विद्वानों का नज़रिया इसके विपरीत है।[11] पतंजलि और कात्यायन जैसे प्राचीन भारतीय व्याकरणविदों का कहना है कि प्रारम्भिक वैदिक काल[12][13] में महिलाओं को शिक्षा दी जाती थी। ऋग्वेदिक ऋचाएं यह बताती हैं कि महिलाओं की शादी एक परिपक्व उम्र में होती थी और संभवतः उन्हें अपना पति चुनने की भी आजादी थी।[14] ऋग्वेद और उपनिषद जैसे ग्रंथ कई महिला साध्वियों और संतों के बारे में बताते हैं जिनमें गार्गी और मैत्रेयी के नाम उल्लेखनीय हैं।[15]
प्राचीन भारत के कुछ साम्राज्यों में नगरवधु (“नगर की दुल्हन”) जैसी परंपराएं मौजूद थीं। महिलाओं में नगरवधु के प्रतिष्ठित सम्मान के लिये प्रतियोगिता होती थी। आम्रपाली नगरवधु का सबसे प्रसिद्ध उदाहरण रही है।
अध्ययनों के अनुसार प्रारंभिक वैदिक काल में महिलाओं को बराबरी का दर्जा और अधिकार मिलता था।[16] हालांकि बाद में (लगभग 500 ईसा पूर्व में) स्मृतियों (विशेषकर मनुस्मृति) के साथ महिलाओं की स्थिति में गिरावट आनी शुरु हो गयी और बाबर एवं मुगल साम्राज्य के इस्लामी आक्रमण के साथ और इसके बाद ईसाइयत ने महिलाओं की आजादी और अधिकारों को सीमित कर दिया। [7]
हालांकि जैन धर्म जैसे सुधारवादी आंदोलनों में महिलाओं को धार्मिक अनुष्ठानों में शामिल होने की अनुमति दी गयी है, भारत में महिलाओं को कमोबेश दासता और बंदिशों का ही सामना करना पड़ा है।[16] माना जाता है कि बाल विवाह की प्रथा छठी शताब्दी के आसपास शुरु हुई थी।[17]
Answer:
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने महिला विकास पर विशेष ध्यान केंद्रित किया है। भारत की महिलाएं राष्ट्र की प्रगति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और सरकार उनके योगदान और क्षमता को पहचानती है। सरकार ने महिला सशक्तिकरण को लेकर कई मजबूत कदम उठाए हैं। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ से लेकर बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं और उनके दैनिक जीवन और उनकी दीर्घकालिक संभावनाओं को सुधारने के लिए कई पहल की है। केंद्र सरकार ने अपने कामकाज की बदौलत एक तरह से महिलाओं को एक साथ जोड़ दिया है।
महिला सशक्तीकरण के लिए मूल सिद्धांत हैं कि महिलाओं को सामाजिक और राजनीतिक अधिकार, वित्तीय सुरक्षा, न्यायिक शक्ति और वे सारे अधिकार जो पुरुषों को प्राप्त हैं वह मिलना चाहिए । मतलब ये कि महिलाओं को पुरूषों के समान अधिकारों का आनंद मिलना चाहिए। अगर साफ शब्दों में कहें तो लिंग आधारित कोई पूर्वाग्रह नहीं होना चाहिए । हालांकि परंपरागत मानदंड और ये प्रथा तेजी से बदल रहे हैं, फिर भी महिलाओं को ये जानना चाहिए कि उनके मूल और सामाजिक अधिकार क्या है । सशक्त महिलाओं का मतलब है कि महिलाओं को अपने व्यक्तिगत लाभों के साथ ही साथ ही समाज के लिए अपने स्वयं के निर्णय ले सकने में सक्षम हो । महिला सशक्तिकरण का मतलब ये कि अब ये महिलाएं के साथ पितृसत्ता का स्थान ले रहा है।