भारतीय दल प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
Answers
Answer:जार्ज वाशिंगटन और जयप्रकाश नारायण जैसे राजनीति के महान् सेवक दलविहीन लोकतंत्र के समर्थक रहें है। लेकिन 21 वीं सदी तक के राजनीतिक विकास ने दलों की अनिवार्यता स्थापित कर दी है । आज लार्ड ब्राइस का यह कथन पूर्णतः स्थापित हो चुका है कि - ‘‘कोई भी स्वतंत्र देश इनके बिना नहीं रह सकता है । किसी व्यक्ति ने यह नहीं दिखाया कि लोकतंत्र दलों के बिना कैसे चल सकता है ।’’
वास्तव में राजनीतिक दल ही वह तत्व है जो जनता और सरकार को जोड़े रखता है । जिसे हम जनइच्छा कहते है वह निर्वाचनों द्वारा दलों के माध्यम से ही व्यक्त होती है, जिस प्रकार साहित्य समाज का दर्पण होता है उसी प्रकार राजनीतिक दल किसी राजनीतिक समाज का आईना होते है । राजनीतिक दलों की प्रकृति, स्वरूप, कार्यकरण, और राजनीतिक भर्ती की स्थिति आदि को देखकर यह अंदाज लगाया जा सकता है कि कोई राजनीतिक समाज कितना स्वतंत्र, परिपक्व और विकसित है ? इस आधार पर भारतीय दलीय पद्धति और राजनीतिक समाज को एक संक्रमणकालीन समाज या देश कहा जा सकता है, जिसमें प्राचीनता और आधुनिकता के लक्षण एक साथ उपस्थित रहतें है ।
वास्तव में भारतीय राजनीति की जो समस्याएं जाहिर तौर पर हमें दिखायी देती है । जैसे भ्रष्टाचार, जातिवाद, भाई भतीजावाद, क्षेत्रवाद, साम्प्रदायिकता, आदि पर ये सभी वास्तव में दलीय प्रणाली के परिपालन की समस्याएं है । दूसरे शब्दों में दलीय प्रणाली के विकास के साथ ही वे विकसित हुई है ।
मूल्य विहीनता - स्वतंत्रता, समानता, न्याय आदि वे उच्च राजनीतिक मूल्य या आदर्श है, जिन्हें न केवल संविधान में सर्वोच्च स्थान दिया गया है बल्कि इन्हीं के आधार पर राजनीतिक दल कार्य करने का दावा करते है, किन्तु क्या एक भी राजनीतिक दल आज ऐसा है जो राजस्थान में जाकर बाल विवाह के विरूद्ध आंदोलन कर सकें ? या हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खाप पंचायतों का विरोध कर सकें?
स्वयं भू बाबाओं के आश्रमों से निकल रही अरबों खरबो की सम्पत्ति के राष्ट्रीकरण की बात कर सके ? संतो मंदिरों में मत्था टेकने वाले और संतो को महिमा मण्डल करने वाले लोगों पर कारवाई की मांग कर सकें ? आजादी के 66 वर्षो बाद भी देश में समान नागरिक संहिता नहीं बन सकी है । इसका प्रधान कारण है कि चुनाव जीतने की लालसा में ‘‘तात्कालिन समझौतावाद’’ की प्रवृत्ति बढ़ती गयी और धीरे-धीरे राजनीतिक दलों का मूल्यात्मक पतन हो गया । 1967 के बाद राजनीतिक दल अपना राष्ट्रीय चरित्र खोते गए, फलतः स्थानीय स्तर पर जीतने की जुगाड़ प्रवृत्ति बढ़ती गयी और दलों का मूल्यात्मक पतन होता गया । वास्तविकता यह है कि मूल्य विहीनता ही आज सबसे बड़ा मूल्य है । इसके लिए निश्चित रूप से जो दल जितने बड़े है, उतने ही ज्यादा जवाबदार है ।
हमें भारतीय दल प्रणाली के प्रमुख विशेषताएँ लिखना है I
- एक लोकतांत्रिक देश में राजनीतिक दलों द्वारा सरकार की व्यवस्था से संबंधित तुलनात्मक राजनीति विज्ञान में एक पार्टी प्रणाली एक अवधारणा है।
- भारत में बहुदलीय व्यवस्था है।
- यहां कई राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल हैं।
- एक क्षेत्रीय दल बहुमत प्राप्त कर सकता है और किसी विशेष राज्य पर शासन कर सकता है।
- यदि किसी पार्टी का प्रतिनिधित्व 4 से अधिक राज्यों में होता है, तो उसे राष्ट्रीय भाग का लेबल दिया जाएगा I
PROJECT CODE #SPJ3