भाषा कौशल के विकास मे ड्रामा थियेटर नाटक को उदाहरण सहित बताए
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थियेटर/ड्रामा लगभग तबसे ही अस्तित्व में है जबसे इन्सान। इस लम्बे समयकाल में थियेटर ने कई शक्लें बदली हैं। स्थितियाँ और उद्देश्य भिन्न-भिन्न रहे हैं:
लगता है कि प्राचीन काल के लोग शिकार की घटना के चित्रण को कभी तो कामयाब शिकार की रिहर्सल – और कभी उसके उत्सव, उसका जश्न मनाने – के तौर पर प्रयोग में लाते थे। दोनों ही सन्दर्भों में अभिनेता होते हैं और दर्शकगण भी।
धर्म के लोकप्रियकरण के लिए, उसे बढ़ावा देने के लिए, थियेटर के प्रयोग के दो प्रमुख उदाहरण पूरब में हिन्दुवाद और पश्चिम में ईसाइयत हैं। इस सन्दर्भ में ईसा मसीह के जीवन और बाइबल से विभिन्न घटनाओं को चित्रित किया जाना, और इसी प्रकार महाभारत और रामायण से प्रसंगों को नाटकीयता से प्रस्तुत किया जाना शामिल रहा है। विशेष तौर से इन्सान के साक्षर होने से भी पहले के दौर में इन घटनाओं और प्रसंगों के चित्रण को नाट्य-प्रदर्शनों के माध्यम से जाना और पसन्द किया जाता था। बाद में टेलीविजन और सिनेमा के माध्यम से भी यह हुआ। इसमें भी अभिनेता और दर्शक, दोनों शामिल रहते हैं।
चर्च से राज्य और नागरिक समाज तक, धर्म से राजनीति तक - थियेटर प्रतिरोध के आन्दोलनों का शक्तिशाली राजनैतिक साधन और औजार बना; राजनैतिक थियेटर से लेकर आज के “नुक्कड़ नाटक” तक। भारत में एक ओर तो यह ‘इप्टा’ के मंच प्रदर्शनों से लेकर सफ़दर हाशमी के सशक्त वक्तव्यों तक, और दूसरी ओर प्रायोजित समूहों के जागरूकता मात्र फैलाने के प्रदर्शनों में झलकता है। वे चाहे धार्मिक हों चाहे राजनैतिक या फिर जागरूकता पैदा करने की ओर प्रवृत्त, इन सब प्रदर्शनों में अभिनेता और दर्शक शामिल रहते हैं।
और इसके अलावा, बड़े पैमाने पर मनोरंजन के लिए थियेटर तो है ही – जो विचारोत्तेजक, हास्य पैदा करने वाला, नवाचारी, अतियथार्थवादी,.... कुछ भी हो सकता है – भास से लेकर शेक्सपियर तक का फैलाव है इसका। मनोरंजन करने वाले और मनोरंजित होने वाले; प्रदर्शनकर्ता और दर्शकगण दोनों ही हैं इसमें भी।
लगता है कि प्राचीन काल के लोग शिकार की घटना के चित्रण को कभी तो कामयाब शिकार की रिहर्सल – और कभी उसके उत्सव, उसका जश्न मनाने – के तौर पर प्रयोग में लाते थे। दोनों ही सन्दर्भों में अभिनेता होते हैं और दर्शकगण भी।
धर्म के लोकप्रियकरण के लिए, उसे बढ़ावा देने के लिए, थियेटर के प्रयोग के दो प्रमुख उदाहरण पूरब में हिन्दुवाद और पश्चिम में ईसाइयत हैं। इस सन्दर्भ में ईसा मसीह के जीवन और बाइबल से विभिन्न घटनाओं को चित्रित किया जाना, और इसी प्रकार महाभारत और रामायण से प्रसंगों को नाटकीयता से प्रस्तुत किया जाना शामिल रहा है। विशेष तौर से इन्सान के साक्षर होने से भी पहले के दौर में इन घटनाओं और प्रसंगों के चित्रण को नाट्य-प्रदर्शनों के माध्यम से जाना और पसन्द किया जाता था। बाद में टेलीविजन और सिनेमा के माध्यम से भी यह हुआ। इसमें भी अभिनेता और दर्शक, दोनों शामिल रहते हैं।
चर्च से राज्य और नागरिक समाज तक, धर्म से राजनीति तक - थियेटर प्रतिरोध के आन्दोलनों का शक्तिशाली राजनैतिक साधन और औजार बना; राजनैतिक थियेटर से लेकर आज के “नुक्कड़ नाटक” तक। भारत में एक ओर तो यह ‘इप्टा’ के मंच प्रदर्शनों से लेकर सफ़दर हाशमी के सशक्त वक्तव्यों तक, और दूसरी ओर प्रायोजित समूहों के जागरूकता मात्र फैलाने के प्रदर्शनों में झलकता है। वे चाहे धार्मिक हों चाहे राजनैतिक या फिर जागरूकता पैदा करने की ओर प्रवृत्त, इन सब प्रदर्शनों में अभिनेता और दर्शक शामिल रहते हैं।
और इसके अलावा, बड़े पैमाने पर मनोरंजन के लिए थियेटर तो है ही – जो विचारोत्तेजक, हास्य पैदा करने वाला, नवाचारी, अतियथार्थवादी,.... कुछ भी हो सकता है – भास से लेकर शेक्सपियर तक का फैलाव है इसका। मनोरंजन करने वाले और मनोरंजित होने वाले; प्रदर्शनकर्ता और दर्शकगण दोनों ही हैं इसमें भी।
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