Hindi, asked by ishvergurjar330, 3 months ago

बहुत से मनुष्य यह सोच-सोचकर कि हमें कभी सफलता नहीं मिलेगी, दैव हमारे विपरीत है,अपनी सफलता को
अपने ही हाथों पीछे धकेल देते हैं। उनका मानसिक भाव सफलता और विजय के अनुकूल बनता ही नहीं तो सफलता
और विजय कहाँ? यदि हमारा मन शंका और निराशा से भरा है तो हमारे कामों का परिचय भी निराशाजनक ही होगा,
क्योंकि सफलताकी, विजयकी, उन्नति कीकुंजीतो अविचल श्रद्धाही है।​

Answers

Answered by pandiduraibjp
3

Answer:

soory I doesn't is that paragraph

Answered by itzsecretagent
2

Answer:

भाव-

हम अपनी सोच के कारण ही सफलता के सुख का और असफलता के दु:ख का भोग करते हैं। सफलता की सोच आशावादी और असफलता की सोच निराशावादी होती है। अपने उद्देश्य के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास हमें सफल बनाता है जबकि इसके विपरीत हम हतोत्साहित होकर असफल ही होते हैं। यह सब हमारी सोच पर ही आश्रित है।

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