Hindi, asked by mansingharodiya, 2 months ago

बहुत से मनुष्य यह सोच-सोचकर कि हमें कभी सफलता नहीं मिलेगी, दैव हमारे विपरीत है, अपनी सफलता
अपने ही हाथों पीछे धकेल देते है। उनका मानसिक भाव सफलता और विजय के अनुकूल बनता ही नहीं तो सफलत
और विजय कहाँ? यदि हमारा मन शंका और निराशा से भरा है तो हमारे कामों का परिचय भी निराशा जनक ही होगा
क्योंकि सफलता की, विजयकी, उन्नतिकीकुजी तो अविचल श्रद्धा ही है। yah kis part se liya gaya hai​

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Answered by anuveshasingh619
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शीर्षक 1. जीवन एक कर्मक्षेत्र 2. संघर्षः सफलता का आधर 3. कर्म ही जीवन

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