Hindi, asked by abhayvermanis, 5 months ago

भीड़ में खोया आदमी का शीर्षक की सार्थकता​

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Answered by bhatiamona
65

भीड़ में खोया आदमी का शीर्षक की सार्थकता​:

भीड़ में खोया आदमी का शीर्षक की सार्थकता

भीड़ में खोया आदमी लीलाधर निबंध शर्मा पर्वतीय द्वारा लिखी गई है | निबंध में लेखक ने बढ़ती हुई जनसंख्या के बारे में बताया है |  

निबंध में लेखक ने देश में बढ़ती हुई जनसंख्या से विभिन्न साधनों के सिमित होने के बारे में बताया है , जैसे घर , स्टेशन , अस्पताल , रोज़गार कार्यालय शासन आदि के सिमित उदाहरण देते हुए बताया है | बढ़ती हुई भीड़ में आदमी का अपना अस्तित्व खोता जा रहा है |

        बढ़ती हुई जनसंख्या से बहुत सारी समस्याएँ पैदा हो रही है , रोजगार कम हो रहा है , लोहो के रहने तक के लिए जगह नहीं है , भोजन की कमी आ रही है , स्वास्थ्य में कमी , अस्पतालों की सुविधाओं में कमी | धन का अभाव हो रहा है | लेखक ने इस प्रकार बढ़ती हुई जनसंख्या होने वाली समस्याओं के बारे में बताया गया है |

Answered by bhuniaarman
15

Answer:

Pls mark me the brainlest . 100 percent secured answer.

Explanation:

भीड़ में खोया आदमी का शीर्षक की सार्थकता​:

भीड़ में खोया आदमी का शीर्षक की सार्थकता

भीड़ में खोया आदमी लीलाधर निबंध शर्मा पर्वतीय द्वारा लिखी गई है | निबंध में लेखक ने बढ़ती हुई जनसंख्या के बारे में बताया है |  

निबंध में लेखक ने देश में बढ़ती हुई जनसंख्या से विभिन्न साधनों के सिमित होने के बारे में बताया है , जैसे घर , स्टेशन , अस्पताल , रोज़गार कार्यालय शासन आदि के सिमित उदाहरण देते हुए बताया है | बढ़ती हुई भीड़ में आदमी का अपना अस्तित्व खोता जा रहा है |

       बढ़ती हुई जनसंख्या से बहुत सारी समस्याएँ पैदा हो रही है , रोजगार कम हो रहा है , लोहो के रहने तक के लिए जगह नहीं है , भोजन की कमी आ रही है , स्वास्थ्य में कमी , अस्पतालों की सुविधाओं में कमी | धन का अभाव हो रहा है | लेखक ने इस प्रकार बढ़ती हुई जनसंख्या होने वाली समस्याओं के बारे में बताया गया है |

OR

बढ़ती जनसंख्या के कारण अनुशासन नहीं रहता, दुर्घटनाएँ बढ़ती हैं, समय, शक्ति और धन व्यय करके भी व्यक्ति के कार्य सिद्ध नहीं हो पाते। वह स्वयं भी भीड़ में खो जाता है।

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