भावार्थं लिखत - (भावार्थ लिखिए)
(Express the sense of the following verses.)
(क) सहित्य-संगीत-कला विहीनः साक्षात् पशुः पुच्छ-विषाण हीनः।
तृणं न खादन्नपि जीवमानः तद्भागधेयं परमं पशूनाम्।।
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जो मनुष्य साहित्य, संगीत, कला, से वंचित होता है वह बिना पूंछ तथा बिना सींगों वाले साक्षात् पशु के समान है । वह बिना घास खाए जीवित रहता है यह पशुओं के लिए निःसंदेह सौभाग्य की बात है ।
takarmaan5:
thanks sir
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