भाव स्पष्ट कीजिए-
जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ।
bhaav spaṣṭ keejie-
jagatu tapoban sau kiyau deeragh-daagh nidaagh.
दोहे
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इस दोहे में कवि ने भरी दोपहरी से बेहाल जंगली जानवरों की हालत का चित्रण किया है। भीषण गर्मी से बेहाल जानवर एक ही स्थान पर बैठे हैं। मोर और सांप एक साथ बैठे हैं। हिरण और बाघ एक साथ बैठे हैं। कवि को लगता है कि गर्मी के कारण जंगल किसी तपोवन की तरह हो गया है। जैसे तपोवन में विभिन्न इंसान आपसी द्वेषों को भुलाकर एक साथ बैठते हैं, उसी तरह गर्मी से बेहाल ये पशु भी आपसी द्वेषों को भुलाकर एक साथ बैठे हैं।
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गर्मी के ऋतु की भयानक ताप ने पूरी धरती को तपोवन बना दिया है । इस ताप से प्रभावित हो कर परस्पर शत्रु-भाव रखने वाले जंगल के जानवार जैसे साँप और मोर तथा हिरण और सिंह साथ-साथ रहने लगे है ।
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