Hindi, asked by remam7751, 9 months ago

भाव स्पष्ट कीजिए -

(क) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी||
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूँकि पहारू||
(ख) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं||
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना||
(ग) गाधिसू नु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ||

Answers

Answered by bhatiamona
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भाव स्पष्ट इस प्रकार है  

(क) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी||

पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूँकि पहारू||

इन पंक्तियों में लक्ष्मण अभिमान में चूर परशुराम स्वभाव पर व्यंग्य किया है। लक्ष्मण मुस्कुराते हुए कहते हैं कि आप मुझे बार-बार इस फरसे को दिखाकर डरा रहे हैं। ऐसा लगता है मानो आप फूँक मारकर पहाड़ उड़ाना चाहते हों।

(ख) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं||

देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना||

इन पंक्तियों में लक्ष्मण ने परशुराम के अभिमान को चूर करने के लिए अपनी वीरता को बताया है। लक्ष्मण  कहते हैं कि हम कुम्हड़े के कच्चे फल नहीं हैं जो तर्जनी के दिखाने से मुरझा जाता है। यानी वह  कमजोर नहीं हैं जो धमकी से भयभीत हो जाएँ। वह यह बात उनके फरसे को देखकर बोल रहे हैं। उन्हें स्वयं पर विश्वास है।

(ग) गाधिसू नु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।

अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ||

इन पंक्तियों में विश्वामित्र मन ही मन मुस्कराते हुए सोच रहे हैं कि परशुराम ने सामन्य क्षत्रियों को युद्ध में हराया है तो इन्हें हरा-ही-हरा नजर आ रहा है। राम-लक्ष्मण को साधारण क्षत्रिय नहीं हैं। परशुराम इन्हें गन्ने की बनी तलवार के समान कमजोर समझ रहे हैं पर असल में ये लोहे की बनी तलवार हैं। परशुराम के अहंकार और क्रोध ने उनकी बुद्धि को अपने वश में ले लिया है।

Answered by SameerDX
37

Answer:

बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी॥

पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूँकि फारू॥

उत्तर: इसपर लक्ष्मण हँसकर और थोड़े प्यार से कहते हैं कि मैं जानता हूँ कि आप एक महान योद्धा हैं। लेकिन मुझे बार बार आप ऐसे कुल्हाड़ी दिखा रहे हैं जैसे कि आप किसी पहाड़ को फूँक मारकर उड़ा देना चाहते हैं। ऐसा कहकर लक्ष्मण एक ओर तो परशुराम का गुस्सा बढ़ा रहे हैं और शायद दूसरी ओर उनकी आँखों पर से परदा हटाना चाह रहे हैं।

इहाँ कुम्हड़बतिया कोई नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥

देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥

उत्तर: मैं कोई कुम्हड़े की बतिया नहीं हूँ जो तर्जनी अंगुली दिखाने से ही कुम्हला जाती है। मैंने तो कोई भी बात ऐसी नहीं कही जिसमें अभिमान दिखता हो। फिर भी आप बिना बात के ही कुल्हाड़ी की तरह अपनी जुबान चला रहे हैं। इस चौपाई में लक्ष्मण ने कटाक्ष का प्रयोग करते हुए परशुराम को यह बताने की कोशिश की है के वे लक्ष्मण को कमजोर समझने की गलती नहीं करें।

गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।

अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ॥

उत्तर: ऐसा सुनकर विश्वामित्र मन ही मन हँसे और सोच रहे थे कि इन मुनि को सबकुछ मजाक लगता है। यह बालक फौलाद का बना हुआ और ये किसी अबोध की तरह इसे गन्ने का बना हुआ समझ रहे हैं। विश्वामित्र को परशुराम की अनभिज्ञता पर तरस आ रहा है। परशुराम को शायद राम और लक्ष्मण के प्रताप के बारे में नहीं पता है।

Explanation:

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