History, asked by jaiswalpradeep1970, 8 months ago

भाव स्पष्ट कीजिए -क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की बांध टूटा झर-झर मिलन के आंसू ठरके ​

Answers

Answered by Anonymous
6

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता ‘मेघ आए’ प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त कविता है। इसमें कवि ने बादलों के आने को एक मेहमान के रूप में पेश किया है। कवि ने आकाश में मेघों के आने का वर्णन की तुलना गांव में सज सवंरकर आने वाले दमाद के साथ की है। जिस प्रकार दमाद के आने पर गांव में प्रसन्नता का वातावरण उत्पन्न हो जाता है उसी प्रकार मेघा के आने पर धरती के प्राकृतिक उपादान उमंग में झूम उठते हैं।

धरती मानों बादलों से कह रही हो कि क्षमा करो। अभी तक हम समझ रहे थे कि आकाश में उमड़-घुमड़ कर आए बादल बरसेंगे नहीं, पर अब यह भ्रम टूट गया है। इससे यह ध्वनि भी उत्पन्न होती है कि तुम्हारे कभी न आने का जो भ्रम बना हुआ था वह टूट गया है।

hope it helps you :p

Similar questions