भाव स्पष्ट करें:-
ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था ,
छुआ - छूत किसने जानी ।
बनी हुई थी अहा , झोपड़ी,
और चीथड़ों में रानी ।
Answers
भावार्थ......
कवयित्री कहती हैं कि उस बचपन में मेरे मन में ऊँच-नीच की भावना नहीं थी अर्थात् मैं बिना किसी छोटे-बड़े के भेद के सबके साथ खेला करती थी और न ही मैं छुआछूत जानती थी। मैं उस समय झोंपड़ी में रहते हुए तथा चीथड़े पहने रहने पर भी रानी जैसी बनी हुई थी। उस समय बात-बात पर मैं रोने लग जाती थी और किसी बात का हठ करके मचल उठती थी, ये दोनों बातें मुझे बहुत आनन्द देती थीं। कभी-कभी मेरी आँखों से निकलने वाले बड़े-बड़े आँसू मोती बनकर मेरे गालों पर जयमाला पहना दिया करते थे।
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भावार्थ
कवयित्री कहती हैं कि उस बचपन में मेरे मन में ऊँच-नीच की भावना नहीं थी अर्थात् मैं बिना किसी छोटे-बड़े के भेद के सबके साथ खेला करती थी और न ही मैं छुआछूत जानती थी। मैं उस समय झोंपड़ी में रहते हुए तथा चीथड़े पहने रहने पर भी रानी जैसी बनी हुई थी। उस समय बात-बात पर मैं रोने लग जाती थी और किसी बात का हठ करके मचल उठती थी, ये दोनों बातें मुझे बहुत आनन्द देती थीं। कभी-कभी मेरी आँखों से निकलने वाले बड़े-बड़े आँसू मोती बनकर मेरे गालों पर जयमाला पहना दिया करते थे।