bhagvan
Ram Ke Upar 10 panktiya likhiye in Hindi
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1. Lord Rama’s name was given by Vashishtha Maharshi, the guru of the Raghu dynasty. His name had a significant meaning, as it’s composed of two “beeja aksharas” – the Agni Beeja (Ra) and the Amrutha Beeja (Ma). While the Agni Beeja served to vitalize his soul and body, the Amrutha Beeja rejuvenated him from all the fatigue.
2. Lord Rama’s name comes in at the 394th place of the Vishnu Sahasranama, which is a compilation of the thousand names of Lord Vishnu.
3. One day, Yama came in disguise of a Rishi in order to sought to meet Rama in private
4. according to some belief , Ram avatar is not considered to ve a purna avtar . his incarnation was having 14 Kalas and only Shri Krishna avatar has all 16 kalas
5. Lord Rama, as a child, once threw his toy playfully and it hit Manthara’s hunch back. Manthara took her revenge through Kaikeyi and sent Lord Rama on a 14-year exile.
6.Parshuram, another incarnation of Lord Vishnu, had once challenged Lord Rama to string Lord Vishnu’s bow. Lord Rama accepted the challenge and achieved the feat quite easily. Parshuram then realised that he was no ordinary human being.
7.Lord Rama had lifted and broken the bow of Lord Shiva during Sita’s Swayamvar – this fact has only been mentioned in Tulsidas’ Ramcharitmanas. Valmiki’s Ramayana doesn’t contain this fact.
8. When Lord Rama and Lakshman were searching for Sita in the forest, they had come across a demon, Kambadh whom they killed. Actually Kambadh had become a demon due to a curse. When Lord Rama went to burn his dead body, his soul was relived from the curse and he told him to do friendship with Sugreev.
9. Ram intended to use brahmastra a couple of times, Once, on Jayanta & 2nd time on Sagar (the god of Sea).
10. When Lord Rama, Sita and Laxmana were in exile in the Dandakaranya forest.
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Answer:
रामचंद्र जी की सभी चेष्टाएं धर्म, ज्ञान, नीति, शिक्षा, गुण, प्रभाव, तत्व एवं रहस्य से भरी हुई हैं।
उनका व्यवहार देवता, ऋषि, मुनि, मनुष्य, पक्षी, पशु आदि सभी के साथ ही प्रशंसनीय, अलौकिक और अतुलनीय है।
देवता, ऋषि, मुनि और मनुष्यों की तो बात ही क्या-जाम्बवान, सुग्रीव, हनुमान आदि रीछ-वानर, जटायु आदि पक्षी तथा विभीषण आदि राक्षसों के साथ भी उनका ऐसा दयापूर्ण प्रेमयुक्त और त्यागमय व्यवहार हुआ है कि उसे स्मरण करने से ही रोमांच हो आता है।
भगवान श्री राम की कोई भी चेष्टा ऐसी नहीं जो कल्याणकारी न हो।
उन्होंने साक्षात पूर्णब्रह्म परमात्मा होते हुए भी मित्रों के साथ मित्र जैसा, माता-पिता के साथ पुत्र जैसा, सीता जी के साथ पति जैसा, भाइयों के साथ भाई जैसा, सेवकों के साथ स्वामी जैसा, मुनि और ब्राह्मणों के साथ शिष्य जैसा, इसी प्रकार सबके साथ यथायोग्य त्यागयुक्त प्रेमपूर्ण व्यवहार किया है।
अत: उनके प्रत्येक व्यवहार से हमें शिक्षा लेनी चाहिए। श्री रामचंद्र जी के राज्य का तो कहना ही क्या, उसकी तो संसार में एक कहावत हो गई है। जहां कहीं सबसे बढ़कर सुंदर शासन होता है, वहां ‘रामराज्य’ की उपमा दी जाती है।
श्री राम के राज्य में प्राय: सभी मनुष्य परस्पर प्रेम करने वाले तथा नीति, धर्म, सदाचार और ईश्वर की भक्ति में तत्पर रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करने वाले थे।
प्राय: सभी उदारचित्त और परोपकारी थे। वहां सभी पुरुष एकनारीव्रती और अधिकांश स्त्रियां धर्म का पालन करने वाली थीं।
भगवान श्रीराम का इतना प्रभाव था कि उनके राज्य में मनुष्यों की तो बात ही क्या, पशु-पक्षी भी प्राय: परस्पर वैर भुलाकर निर्भय विचरा करते थे। भगवान श्रीराम के चरित्र बड़े ही प्रभावोत्पादक और अलौकिक थे।
हिंदू संस्कृति के अनुसार भाइयों के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार होना चाहिए इसकी शिक्षा हमें रामायण में श्रीराम, श्रीलक्ष्मण, श्रीभरत एवं श्रीशत्रुघन के चरित्रों से स्थान-स्थान पर मिलती है।
उनकी प्रत्येक क्रिया में स्वार्थ त्याग और प्रेम का भाव झलक रहा है। श्रीराम और भरत के स्वार्थ त्याग की बात क्या कही जाए।
श्री रामचंद्र जी का प्रत्येक संकेत, चेष्टा और प्रसन्नता भरत के राज्याभिषेक के लिए और भरत की श्री राम के राज्याभिषेक के लिए।यह है हिंदू-संस्कृति।
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