Hindi, asked by prince887748, 1 year ago

भजन पूजन कविता का भावार्थ​

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Answered by Anonymous
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Answer:

विहगयाथार

दापतीय संघर्ष के नेतृत्व के लिए नेहरू

जी किस वर्षकी ओर देखोये और

ग्यो

विटिशकालीन माल

Answered by masterpratik077
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Answer:

परिश्रम करना तथा अपने उत्तरदायित्व को ईमानदारी से निभाना ही सच्ची ईश्वर भक्ति है | इस कविता में कवि ‘ठाकुर‘ जी ने पुजारी को भजन, पूजन और आराधना आदि भक्ति के साधनों का परित्याग कर एक नए मार्ग पर बढ़ने की प्रेरणा दी है | यह मार्ग साधना का मार्ग है | कवि पुजारी से कहते हैं कि दरवाजे बंद करके देवालय के एक कोने में बैठ कर तू कौन-सी पूजा में व्यस्त है ? आँखें खोलकर देखो तो तुम्हें पता चलेगा कि तुम्हारा देवता मंदिर में नहीं वह तो  वहाँ चला गया है , जहाँ मजदूर पत्थर तोड़ रहे हैं , जहाँ सड़क का  निर्माण हो रहा है |

कवि ने परिश्रम की महिमा का गुणगान किया है | प्रभु वहाँ रहता है , जहाँ सरलता, सादगी, सच्चाई तथा मेहनत का भाव है | ईश्वर स्वयं भी निर्माता है तथा मनुष्य से भी निर्माण कार्य में लगे रहने की इच्छा रखता है |

हे पुजारी उस किसान को देख उस मजदूर को देख जो धूप और बरसात में समान रूप से काम करता है | सच्चे देवता और पुजारी वही हैं जो सीधी –सादी पोशाक पहनकर हाथ मिट्टी से लथपथ करके मेहनत करते हैं | अत: तू भी पूजा की सामग्री एक तरफ रख और चला जा किसान और मजदूर के पास |

कवि कहते हैं कि स्वयं ईश्वर भी निर्माण कार्य में लीन है | तू भी मन का अंधकार दूर कर | जीवन को सार्थक बनाने के लिए कर्मभूमि में प्रवेश करो | किसानों और मजदूरों  के साथ अपना पसीना बहाओ | इससे बढ़कर कोई भजन, पूजन और साधन नहीं है |

अत: कर्मभूमि ही सबसे बड़ा मंदिर है | पसीने की बूँदें ही सबसे कीमती पूजा सामग्री हैं |

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