Hindi, asked by donajijoy5326, 11 months ago

भक्तिन की बेटी पर पंचायत द्वारा ज़बरन पति थोपा जाना एक दुर्घटना भर नहीं, बल्कि विवाह के संदर्भ में स्त्री के मानवाधिकार ( विवाह करें या ना करें अथवा किससे करें ) इसकी स्वतंत्रता को कुचलते रहने की सदियों से चली आ रही सामाजिक परंपरा का प्रतीक है। कैसे?

Answers

Answered by laabhansh9545jaiswal
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Answer:

मार्क अस ब्रैंलिएस्ट

Explanation:

उत्तर : भक्तिन की बेटी विवाह नहीं करना चाहती थी। यही कारण है कि जब उसके ताऊओं द्वारा रिश्ता लाया गया, तो उसने साफ इनकार कर दिया। उन्हें यह इनकार पसंद नहीं आया और उन्होंने उस लड़की के खिलाफ षडयंत्र रचा। लड़के ने घर में लड़की को अकेला पाकर अंदर से दरवाज़ा बंद कर दिया। जब हल्ला हुआ, तो इस फैसले के लिए पंचायत बुलायी गई। पंचायत यह देख चुकी थी कि लड़की ने उस लड़के के मुख पर अपनी इनकार की मुहर पहले से दे दी है। इसके बाद भी उसकी नहीं सुनी गई। उसका विवाह उसकी इच्छा के विरुद्ध करने का निर्णय पंचायत ने दे डाला। यह कहाँ का न्याय है। जब पंचायत ने बेकसूर लड़की को एक निकम्मे लड़के के साथ इसलिए शादी करने के लिए विवश किया क्योंकि वह उसके कमरे में घुस बैठा था। यह एक लड़की के अधिकारों का हनन ही तो है। लड़की की इच्छा के बिना उसका विवाह करने का निर्णय देने का अधिकार पंचायत को किसी ने नहीं दिया है। एक लड़की को पूर्ण अधिकार है कि वह किससे विवाह करे और किससे विवाह करने के लिए मना कर दे। यदि हम न्याय के अधिकारी कहलाते हैं, तो हमारा यह कर्तव्य बनाता है कि हम सही न्याय करें। इसके साथ ही दूसरों के अधिकारों की रक्षा बिना किसी जाति, लिंग तथा धार्मिक भेदभाव को दूर रखकर करें।

Answered by parmodkumar89527
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Answer:

भक्तिन की बेटी के पति की आकस्मिक मृत्यु के बाद बड़े जिठौत ने अपने तीतरबाज साले से उसका विवाह कराना चाहा पर भक्तिन की बेटी ने उसे नापसंद कर दिया। इस पर एक दिन वह व्यक्ति भक्तिन (माँ) की अनुपस्थिति में बेटी की कोठरी में जा घुसा और भीतर से दरवाजा बंद कर लिया। उस अहीर युवती ने उसकी मरम्मत करके जब कुंडी खोली तब उस तीतरबाज युवक ने गाँव के लोगों के सामने कहा कि-युवती का निमंत्रण पाकर ही भीतर गया था। युवती ने उस युवक के मुख पर छपी प्रप अपनी अंगुलियों के निशान को दिखाकर अपना विरोध जताया पर लोगों ने पंचायत बुलाकर यह निर्णय करवा लिया कि चाहे कोई भी सच्चा या झूठा क्यों न हो पर वे कोठरी में पति-पत्नी के रूप मैं रहे हैं अत: विवाह करना ही होगा। अपमानित बालिका लहू का घूँट पीकर रह गई।

निश्चय ही यह एक दुर्घटना तो थी ही, पर स्त्री के मानवाधिकार का हनन भी था। यह बात युवती की इच्छा पर छोड़ी जानी चाहिए थी कि वह विवाह करे या न करे और करे तो किससे करे। उस पर कोई बात जबर्दस्ती नहीं लादी जानी चाहिए थी। हम देखते हैं कि स्त्री का ऐसा शोषण सदियों से होता चला आ रहा है। स्त्री को कुचलते रहने की परंपरा सदियों से चलती आ रही है। यह घटना उसी की प्रतीक है।

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