Bhakti kaal par Kavita
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HEY THERE ☺☺
HERE IS YOUR ANSWER ----
बादल देख डरी
मीराबाई | शृंगार रस | भक्तिकाल
बादल देख डरी हो, स्याम, मैं बादल देख डरी
श्याम मैं बादल देख डरी
काली-पीली घटा ऊमड़ी बरस्यो एक घरी
जित जाऊं तित पाणी पाणी हुई सब भोम हरी
जाके पिया परदेस बसत है भीजे बाहर खरी
मीरा के प्रभु गिरधर नागर कीजो प्रीत खरी
श्याम मैं बादल देख डरी
HOPE THIS WILL HELP YOU.
PLEASE MARK IT AS THE BRAINLIEST.
THANKS.
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बादल देख डरी
मीराबाई | शृंगार रस | भक्तिकाल
बादल देख डरी हो, स्याम, मैं बादल देख डरी
श्याम मैं बादल देख डरी
काली-पीली घटा ऊमड़ी बरस्यो एक घरी
जित जाऊं तित पाणी पाणी हुई सब भोम हरी
जाके पिया परदेस बसत है भीजे बाहर खरी
मीरा के प्रभु गिरधर नागर कीजो प्रीत खरी
श्याम मैं बादल देख डरी
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भक्तिकाल पर दो कवितायें यहाँ पर पेश हैं....
संत कवि ‘रैदास’ द्वारा रचित एक भजन रूपी कविता....
प्रभु जी तुम चंदन हम पानी। जाकी अंग-अंग बास समानी॥
प्रभु जी तुम घन बन हम मोरा। जैसे चितवत चंद चकोरा॥
प्रभु जी तुम दीपक हम बाती। जाकी जोति बरै दिन राती॥
प्रभु जी तुम मोती हम धागा। जैसे सोनहिं मिलत सोहागा।
प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा। ऐसी भक्ति करै 'रैदासा॥
‘सूरदास’ द्वारा रचित कृष्ण की बाल लीला से संबंधित कविता...
मैया! मैं नहिं माखन खायो।
ख्याल परै ये सखा सबै मिलि मेरैं मुख लपटायो॥
देखि तुही छींके पर भाजन ऊंचे धरि लटकायो।
हौं जु कहत नान्हें कर अपने मैं कैसें करि पायो॥
मुख दधि पोंछि बुद्धि इक कीन्हीं दोना पीठि दुरायो।
डारि सांटि मुसुकाइ जशोदा स्यामहिं कंठ लगायो॥
बाल बिनोद मोद मन मोह्यो भक्ति प्राप दिखायो।
सूरदास जसुमति को यह सुख सिव बिरंचि नहिं पायो॥
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